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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी संसारी आत्मा राग और द्वेष रूपी पाश से आबद्ध हैं। पुनः वे मुक्त आत्मा के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार रेशम का कीड़ा स्वनिर्मित तन्तुजाल को काटकर मुक्त हो जाता है उसी प्रकार संयमी एवं त्यागी आत्मा भी अपने राग-द्वेष रूपी जाल को काटकर सदैव के लिए मुक्त हो जाता है।५६
९. महाकाश्यप
ऋषिभाषित का नवां अध्ययन महाकाश्यप से संबंधित है। इसमें इनके उपदेश संकलित हैं। जैन परंपरा में ऋषिभाषित के अतिरिक्त महाकाश्यप का उल्लेख भगवती एवं उत्तराध्ययनचूर्णि में भी हुआ है।५७ जहाँ भगवती एक काश्यप नामक स्थविर का उल्लेख करती है, वहाँ उत्तराध्ययनचूर्णि कपिल ब्राह्मण के पिता के रूप में एक अन्य काश्यप का उल्लेख करती है। किन्तु ऋषिभाषित के महाकाश्यप से इनका कोई संबंध रहा होगा, ऐसा प्रतीत नहीं होता।
'काश्यप' शब्द का प्रयोग जैन परंपरा में कई बार ऋषभ और महावीर के लिए प्रयुक्त हुआ है। किन्तु यहाँ काश्यप शब्द गोत्र वाचक है न कि व्यक्ति वाचक।
जहाँ तक बौद्ध परपरा का प्रश्न है महाकाश्यप का उल्लेख एक विशेष भिक्षु के रूप में हुआ है।५८ बौद्ध परंपरा में इनकी गणना बुद्ध के श्रेष्ठ शिष्यों में की गई है। प्रो. शुब्रिग और डॉ. सागरमल जैन महाकाश्यप का संबंध बौद्ध परंपरा से जोड़ते हैं। उनकी दृष्टि में ऋषिभाषित के महाकाश्यप बौद्ध परंपरा के महाकाश्यप ही हैं। क्योंकि ऋषिभाषित में वर्णित उनका संततिवाद भी इसी तथ्य की पुष्टि करता है।
हिन्दू परंपरा के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में एक मंत्रवेत्ता काश्यप ब्राह्मण का उल्लेख हुआ है। इसी प्रकार शतपथ ब्राह्मण में भी इनका उल्लेख हुआ है।५९ यदि हम इनका संबंध ऋषिभाषित के महाकाश्यप से जोड़ने का साहस करते हैं तो इन्हें स्पष्टरूप से महावीर युगीन मानना होगा। जबकि ये महाभारत युग से संबंधित है।
महाकाश्यप के उपदेश का मुख्य प्रतिपाद्य विषय संततिवाद है। वे कहते हैं कि जिस प्रकार अंजलि का जल धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है उसी प्रकार बद्ध, स्पृष्ट, निद्धत कर्म-संस्कार भी क्षय होते हैं। इसी अध्याय में संवर निर्जरा, पुण्य-पाप
56. सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ.28 57. (अ) भगवती सूत्र, 550
(ब) उत्तराध्ययनचूर्णि, पृ. 168 58. अंगुत्तरनिकाय खण्ड 1, पृ. 23
59. महाभारत-आदिपर्व, 42/43 Jain Education International...
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