SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी हैं।५२ वल्कलचीरी के संबंध में यह कहा जाता है कि पिता के धर्मोपकरण का प्रमार्जन करते हुए इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था। इनके संबंध में यह भी कहा जाता है कि इन्हें स्त्री-पुरूष, मृग, अश्व आदि का भेद-ज्ञान भी नहीं था। बौद्ध परंपरा में वल्कली थेर के रूप में इनका उल्लेख हुआ है। इसमें इनको श्रावस्ती निवासी ब्राह्मण पुत्र और त्रिवेदज्ञ कहा है। पालि साहित्य के अनुसार ये बौद्ध संघ में दीक्षित हुए थे। इन्होंने गृध्रकूट पर्वत पर साधना की, ऐसा उल्लेख भी उपलब्ध होता है। साथ ही यह भी ज्ञात होता है कि स्वयं बुद्ध ने उनकी आस्था की प्रशंसा की थी।५३ जहाँ तक इनके उपदेश और सिद्धांत का प्रश्न है, वे ब्रह्मचर्य पर अधिक बल देते हैं। वे ऋषिभाषित के छठे अध्ययन में स्पष्ट रूप से पुरुष को संबोधित करते हुए कहते हैं कि स्त्री के प्रति आसक्ति मत रखो, जितना संभव हो सके उससे दूर रहने का प्रयत्न करों, क्योंकि ऐसा नहीं करने से तुम स्वयं अपने ही शत्रु बनोगे और साधना मार्ग से च्युत हो जाआगे। __इस प्रकार हम देखते हैं कि ऋषिभाषित में इनका उपदेश सांसारिक वृत्तियों से अनासक्त होने की प्रेरणा देता है। किन्तु बौद्ध परंपरा में मात्र इनके दीक्षित होने और साधना करने का उल्लेख हुआ है। उपदेशों या किसी सिद्धांत का वर्णन उपलब्ध नहीं होता है। ७. कुम्मापुत्त ___ ऋषिभाषित का सप्तम अध्ययन कुम्मापुत्त से संबंधित है। कुर्मापुत्र का उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त जैन परंपरा के अन्य ग्रंथ विशेषावश्यकभाष्य, आवश्यकचूर्णि, हरिभद्र द्वारा विरचित 'विशेषवती' में भी मिलता हैं।५४ प्राचीन जैन साहित्य में इनको वामन या बौना भी कहा गया है। किन्तु इनका जीवन वृत्तान्त 'कुम्मापुत्रचरियम्' और ऋषिमण्डल की वृत्ति में विस्तार से उपलब्ध होता हैं इन दोनों ग्रंथों का रचनाकाल 12वीं शताब्दी के पश्चात माना गया है। इनके संबंध में यह भी कहा जाता है कि कुम्मापुत्र ने गृहस्थाश्रम में ही कैवल्य प्राप्त कर लिया था। 52. औपपातिक 38 (आगमोदय समिति) 53. थेरगाथा अटठकथा खण्ड 1, पृ. 420 (पालिटेक्स्ट सोसायटी) 54. (अ) विशेषावश्यक भाष्य, गाथा 3169 (ब) आवश्यकचूर्णि, भाग 1, पृ. 583 (स) विशेषवती, द्वारा-हरिभद्र, गाथा 38-44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy