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ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन
29 रूप से पार्श्व परंपरा के चातुर्याम का प्रतिपादन है। नारद ऋषि को अन्य वैदिक और हिन्दू ग्रंथों में भी शौच धर्म का संस्थापक माना गया है। किन्तु ऋषिभाषित में प्रतिपादित शौच धर्म से तात्पर्य आंतरिक वृत्तियों की पवित्रता या शुद्धि से है जबकि अन्य ग्रंथों में शौच का तात्पर्य बाह्य शुद्धि से माना गया है। २. वज्जियपुत्त
ऋषिभाषित का दूसरा अध्ययन वज्जियपुत्त का है। वज्जियपुत्त का उल्लेख जैन, बौद्ध और वैदिक इन तीनों ही परंपराओं में हुआ है।३४ जैन परंपरा में वज्जीयपुत्त का उल्लेख मात्र ऋषिभाषित के अतिरिक्त अन्य ग्रंथों में उपलब्ध नहीं होता है। बौद्ध परंपरा में वज्जीयपुत्त का उल्लेख अनेक स्थानों में हुआ है। बौद्ध परंपरा में वज्जीयपुत्त के नाम से एक पृथक संप्रदाय था, जिसका अस्तित्त्व ईसा पूर्व 3-4 शताब्दी में माना गया था। भिक्षु-नियमों की कुछ बातों में इसका मतभेद था।३५ प्रो. शुब्रिग और सी उपासक ने वज्जियपुत्त का संबंध विशेष रूप से बौद्ध सम्प्रदाय से माना है। थेरगाथा अट्टकथा में इन्हें वैशाली का निवासी लिच्छिवि राजकुमार कहा गया है। ये बुद्ध से प्रभावित होकर प्रव्रजित हुए थे और वैशाली के जंगलों में साधना की थी।२८ वज्जियपुत्तीय श्रमणों को सुविधावादी माना जाता था। औपनिषदिक परंपरा में मात्र इनका नामोल्लेख हुआ है। उनके उपदेश आदि का विशेष वर्णन उपलब्ध नहीं होता है। इस आधार पर केवल इतना कहा जा सकता है कि ये औपनिषदिक काल के कोई ऋषि हैं।
इस अध्याय में उन्होंने मुख्यरूप से कर्मसिद्धांत का प्रतिपादन किया है। इसमें कहा गया है कि जिस प्रकार बीज से अंकुर और अंकुर से बीज की परंपरा चलती रहती है उसी प्रकार कर्म और उसके फल या विपाक की परंपरा चलती रहती है। इसमें कर्म और दुःख का मूल कारण मोह बताया गया है, और मोह के नाश होने पर कर्म परंपरा या भव परंपरा का नाश उसी प्रकार हो जाता है जैसे की जड़ के काट देने पर फूल, फल, पत्ते नष्ट हो जाते हैं। इसमें कर्म सन्ततिवाद का उल्लेख बौद्ध दर्शन के प्रभाव का सूचक है।
वज्जियपुत्त के संबंध में यह स्वाभाविक जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि ऋषिभाषित के वज्जियपुत्त यथार्थ में किस परंपरा के थे? क्योंकि इनका उल्लेख उपनिषद्, जैन एवं बौद्ध तीनों परंपराओं में हुआ है। ऋषिभाषित के वज्जियपुत्त और 34. देखें--'इसिभासियाई' की भूमिका, डॉ सागरमल जैन 35. थेरगाथा अट्ठकथा, भाग 1, पृ. 206, 238 36. इसिभासियाई .2
Introduction P. 4 L.D.Institute of Indology, Ahemadabad, 1974, 37. वही
38. थेरगाथा अट्ठकथा, भाग। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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