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________________ 28 डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी है। साथ ही साथ दोनों ग्रंथों में इन्हें शोच-धर्म का प्रवक्ता कहा गया है। ऋषिभाषित भी नारद को शौचधम का प्रवर्तक मानता है किन्तु यहाँ उनका शौच (पवित्रता), से तात्पर्य आंतरिक वृत्तियों की शुद्धि .से है जबकि अन्य ग्रंथों में उन्हें बाह्य शौच का प्रवर्तक माना गया है। आवश्यक चूर्णि नारद के ब्राह्मणपुत्र होने का उल्लेख करती है, उसमें इनके माता-पिता का नाम यज्ञदत्त और सोमयशा बताया है, जो कि शोरीपुर के निवासी थे। इस प्रकार उपरोक्त ग्रंथों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जैन परंपरा में विभिन्न स्थानों में उल्लिखित नारद भिन्न-भिन्न व्यक्ति न होकर एक ही व्यक्ति है। बौद्ध परंपरा में भी नारद का अनेक स्थानों पर उल्लेख हुआ है। बौद्ध परंपरा में चौबीस बुद्धों की अवधारणा में नारद नवें बुद्ध माने गए हैं। थेरगाथा की अट्ठकथा में एक स्थान पर पद्मोत्तर बुद्ध के समकालीन नारद नामक ब्राह्मण का उल्लेख उपलब्ध होता है तो दूसरे स्थान पर अर्थदर्शी बुद्ध के समकालीन एक अन्य नारद ब्राह्मण का उल्लेख भी हुआ है। इसके अतिरिक्त वाराणसी के ब्रह्मदत्त नामक राजा के मंत्री का नाम नारद और मिथिला नगरी के एक राजा का नाम भी नारद माना गया है किन्तु इन सब नारदों से ऋषिभाषित के नारद का कोई संबंध प्रतीत नहीं होता है।३१ बौद्ध साहित्य में एक काश्यप गोत्रीय नारद का उल्लेख हुआ है, इन्हें ब्राह्मण ऋषि नारद और नारद देवल भी कहा गया है। किन्तु महाभारत के नारद असित देवल के संवाद को देखते हुए ऐसा लगता है कि नारद और देवल समकालीन है, और नारद और देवल ये दो भिन्न व्यक्ति है।३२ जहाँ तक हिन्दू परंपरा का प्रश्न है नारद का उल्लेख अनेक ग्रंथों में हुआ हैं, जैसे ऋग्वेद, अथर्ववेद, छान्दोग्य-उपनिषद, गीता, नारदोपनिषद, नारद परिव्राजकोपनिषद, महाभारत आदि में नारद का वर्णन उपलब्ध है। इन ग्रंथों में नारद का सूक्तों के रचयिता, वेद और अनेक विधाओं का ज्ञाता, मंत्रविद् आदि के रूप में उल्लेख हआ है।३३ ऋषिभाषित में नारद के उपदेशों का मुख्य प्रतिपाद्य विषय शौच-धर्म का प्रतिपादन करना रहा है। उनके अनुसार अहिंसा, सत्य, अदत्त, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ही शौच अर्थात् आत्म-शुद्धि के लक्षण है। वस्तुतः यहाँ चार शौचों का प्रतिपाद्य परोक्ष 29. औपपातिकसूत्र 38 30. आवश्यकचूर्णि भाग-2, पृ. 194 ऋषभदेव-केशरीमल, रतलाम, 1928 31. (अ) थेरगाथा अट्ठकथा भाग 1, पृ. 268 (ब) वही, पृ. 269 (स) जातक कथा, तृतीय भाग, सर्वजातक वर्ग, पृ. 306 (द) वही, चतुर्थ भाग, पृ. 567 32. जातक कथा, पंचम भाग, पृ. 476 33. छान्दोग्य उपनिषद,7/1/1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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