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________________ ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन से जोड़ा नहीं जा सकता है। इन ऋषियों की परंपरा के निर्धारण करने में स्वयं शुबिंग ने भी असमर्थता व्यक्त की है।१८ ऋषिभाषित के ऋषियों का काल जहाँ तक इन ऋषियों के काल का प्रश्न है निश्चित रूप से उसका निर्धारण करना कठिन कार्य है। यद्यपि जैन आचार्यों ने ऋषिभाषित की संग्रहणी गाथा में तथा इसीमण्डल में इन ऋषियों में से प्रथम 20 को अरिष्टनेमि के काल का, उसके पश्चात 15 को पार्श्व के काल का और शेष 10 को महावीर के काल का बताया है। किन्तु उनकी यह मान्यता निर्विवाद नहीं कहीं जा सकती, क्योंकि ऐसी स्थिति में उनतीसवें क्रम पर स्थित वर्धमान को पार्श्व के युग का और 40 वें क्रम पर स्थित द्वैपायन को महावीर के काल का मानना होगा। इसी तरह बारहवें क्रम पर स्थित मंखलिगोशाल अरिष्टनेमि के काल के ऋषि होंगे। जब कि वास्तविकता यह है कि द्वैयापन अरिष्टनेमि के काल के ऋषि है वहीं मंखलिगोशाल महावीर के समकालीन हैं। वर्धमान तो स्वयं महावीर हैं ही, अतः परवर्ती जैन आचार्यों द्वारा किया गया इन ऋषियों के कालक्रम का यह निर्धारण युक्तिसंगत नहीं है। इन ऋषियों के काल-निर्धारण के संबंध में शुबिंग ने भी अपनी भूमिका में कोई प्रयत्न नहीं किया है। अतः इन ऋषियों का कालक्रम निर्धारण करना अभी भी एक कठिन समस्या ही बनी हुई है। यद्यपि इनमें से कुछ ऋषि ऐसे हैं जिनके काल निर्धारण की कोई समस्या नहीं है, जैसे पार्श्व (ईसा पूर्व 8 वीं शती) वर्धमान (ईसा पूर्व छठी शती) मंखलिगोशाल (ईसा पूर्व छठी शती), संजय (ईसा पूर्व छठी शती) रामपुत्त (ईसा पूर्व 7 वीं शती का उत्तरार्ध) अम्बड, वज्जियपुत्त, सारिपुत्त और महाकाश्यप (सभी ईसा पूर्व छठी शती) जहाँ तक औपनिषदिक ऋषियों यथा-याज्ञवल्क्य, अरूण, उद्दालक, अंगिरस, भारद्वाज आदि एवं ब्राह्मण परंपरा के अन्य ऋषियों के काल का प्रश्न है उनका निश्चित काल तो नहीं बताया जा सकता, किन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वे सभी ईसा पूर्व छठी शती के पहले हुए हैं। इसमें विदुर, नारद, द्वैपायन आदि अनेक ऋषि महाभारत काल से संबंधित हैं। ___ जहाँ तक ऋषिभाषित में उल्लिखित ऋषियों की ऐतिहासिकता का प्रश्न है उनमें से कुछ की ऐतिहासिकता तो सुनिश्चित है, जैसे-नारद, वज्जियपुत्त, असितदेवल, अंगिरस, महाकाश्यप, मंखलिपुत्त, याज्ञवल्क्य, भगाली, बाहुक, विदुर, रामपुत्त, अम्बड, वर्धमान, पार्श्व, उद्दालक, अरुण, सारिपुत्त, संजय (वेल्लट्ठीपुत्त), द्वैपायन 18. Isibhasyaim p.-4 Introduction by Walther Schubring, L.D.Institute, Ahemadabad, 9, 19- पत्तेयबुद्धमिसिणो, वीसं तीत्थे अरिट्ठणेमिस्स। पासस्स य पण्णर दस वीरस्स विलीणमोहस्स।।1।। .. -'इसिभासियाई सूत्ताई' प्रथम संग्रहणी गाथा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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