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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी
अंगबाह्य सूत्रों की सूची दी गई है, उसमें ऋषिभाषित का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार प्राचीन उल्लेखों में ऋषिभाषित अंगबाह्य कालिक आगम में परिगणित किया गया है । आवश्यक नियुक्ति में जिन दस ग्रंथों पर नियुक्तिकार ने नियुक्ति लिखने का संकल्प किया है उनमें से ऋषिभाषित भी एक है। किन्तु इसके पूर्व भी हमें 'स्थानांगसूत्र' ' में प्रश्नव्याकरण दशा के जिन 10 अध्यायों का नाम निर्देश मिलता है उसमें भी एक का नाम ऋषिभाषित है ।" इसी प्रकार समवायांगसूत्र के 44 वें समवाय में भी ऋषिभाषित के 44 अध्ययनों के होने का उल्लेख है।' इन सब आधारों पर यह निश्चित होता है कि प्राचीन काल में जैन परंपरा में ऋषिभाषित को एक आगम ग्रंथ के रूप में मान्य किय जाता था, किन्तु इसके बाद इस ग्रन्थ की उपेक्षा होने लगी। प्रश्नव्याकरणदशा के एक भाग के रूप में इसका अंग आगमों में महत्त्वपूर्ण स्थान था, किन्तु इसे उससे अलग कर दिया गया, कुछ समय तक इसे अंगबाह्य या प्रकीर्णकों के अंतर्गत, मान्यता दी गई, किन्तु वहाँ से भी धीरे-धीरे इसका स्थान गौण होता गया । यही कारण है कि वर्तमान में जिन 10 प्रकीर्णकों के उल्लेख मिलते हैं उनमें ऋषिभाषित का नाम नहीं है। किन्तु जैन परंपरा में परवर्ती काल में परिस्थितिवश इस ग्रंथ की जो उपेक्षा हुई, उससे इस ग्रंथ का महत्त्व एवं मूल्य कम नहीं हो जाता है। क्योंकि जैन परंपरा और संपूर्ण प्राकृत साहित्य में यही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो जैन धर्म की उदारता और सहिष्णुता का प्रतिनिधि ग्रन्थ माना जा सकता है।
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ऋषिभाषित का जो महत्त्व है उसके अनेक कारण है । सर्वप्रथम तो यह एक ऐसा ग्रन्थ है, जो सर्वधर्म समभाव का परिचायक है क्योंकि इस ग्रंथ में न केवल जैन परंपरा के अपितु बौद्ध, वैदिक और अन्य श्रामणिक परंपराओं के ऋषियों के उपदेश
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बाह्यमनेकविधम्। तद्यथा--1 सामायिकं, 2 चतुर्विशति स्तवः, 3 वंदनं, 4 प्रतिक्रमणं, 5 कायव्युत्सर्गः 6 प्रत्याख्यानं, 7 दशवैकालिंक, 8 उत्तराध्यायाः, 9 दशा, 10 कल्पव्यवहारौ, 11 निशीथं, 12 ऋषिभाषितानीत्येवमादि। तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् (स्वोपज्ञभाष्य ) 1/20 (देवचन्द लालभाई पुस्कोद्वार फण्ड, क्रम संख्या 57 )
श्रीमद् रायचन्द्र आश्रम अगास, पृ. 42
अ- कालियसुयं च इसिभासियाई तइओ य सूरपण्णत्ती ।
ब
सव्वो य दिट्टिवाओ चउत्थओ होई अणुओगो ||12411 (भू.भा.)
तथा ऋषिभाषितानि उत्तराध्ययनादीनि “तृतीयश्चकालानुयोग : " आवश्यक हारिभद्रीयवृत्ति, पृ. 206 आवस्सस्स दसवालिअस्स तह उत्तरज्झयणमायारे।
सूयगडे निज्जुतिं वुच्छामि तहा दसाणं च ।।
कप्परस य निज्जुतिं ववहारस्सेव परभणिउणस्स । सूरिअपण्णत्तीए वुच्छं इस्भिासिआणं च।।
- आवश्यक निर्युक्ति 84-85
7. पहावगरणदसाणं दस अज्झयणा पन्ता, तंजहा 1 उवमा, 2 संखा, 3 इसि भासियाई, 4 आयरियभासिताई, 5 महावीरभासिताइं, 6 खोमपसिणाई, 7 कोमलपसिणाई, 8 अद्यागपसिणाई, 9 अंगुट्ठकपसिणाई, 10 बाहुपसिणा ।
ठाणं सुत्ते, दसमं अज्झयाणं दस ठाणं (महावीर जैन विद्यालय संस्करण, पृ. 311 )
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चोवालीस अज्झणा इसिभासिया दियलोगवुया भागसिया पण्णत्ता ।
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- समवायांगसूत्र- 44 www.jainelibrary.org