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________________ ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन 15 प्रथम अध्याय विषय प्रवेश ऋषिभाषित-ग्रन्थ परिचय ऋषिभाषित प्राकृत भाषा में रचित जैन परंपरा का एक महत्त्वपूर्ण प्राचीनतम आगम ग्रंथ है। जैन परंपरा में आगम ग्रन्थों का वही स्थान है जो बौद्धों में त्रिपिटक का, हिन्दू धर्म में वेदों का, इसाईयों में बाइबिल का और इस्लाम में कुरान का है। जैन परंपरा में इन आगम ग्रंथों को अंग और अंगबाह्य में वर्गीकृत किया जाता है। दिगम्बर परंपरा में बारह अंग और चौदह अंगबाह्य ग्रंथों का उल्लेख मिलता है, किन्तु तत्त्वार्थ की दिगम्बर टीकाओं और धवला आदि में इन अंग और अंगबाह्य ग्रंथों के जो नाम मिलते हैं उनमें ऋषिभाषित का कहीं भी उल्लेख नहीं श्वेताम्बर परंपरा अपने अंग आगमों को वर्तमान में 11 अंग, 12 उपांग, 6 छेद सूत्र, 4 मूलसूत्र, 2 चूलिका सूत्र, और 10 प्रकीर्णकों में विभाजित करती है। वर्तमान में इन नामों के सभी ग्रंथ मिलते हैं। किन्तु उनमें भी ऋषिभाषित का उल्लेखन नहीं हैं। किन्तु जब हम जैन आगम साहित्य संबंधी प्राचीन उल्लेखों की ओर जाते हैं तो नंदीसूत्र (ई. सन् पाँचवीं शती) और पाक्षिक सूत्र में अंगबाह्यों में कालिक सूत्रों के जो नाम दिये गये हैं, उनमें, और उमास्वाति के स्वोपज्ञ तत्त्वार्थ भाष्य में भी, जो 1. अ- अत्याहियारो दुविहो-अंगबाहिरो अंगपइटको वेदि। तत्थ अंगबाहिरस्स चोद्दस अत्थाहियारा। तंजहा-1 समझाइये 2 वउवीसत्थओ 3 वंदणा 4 पडिक्कमण 5 वेणइर्य 6 किदियम्मं 7 दसवेयालियं 8 उत्तरज्झयणं १ कप्पववहारो 10 कप्पाकप्पियं 11 महाकप्पियं 12 पुंडरीयं 13 महापुंडरीयं, 14 निसीहियं चेदि। धवला, पृ.96 ब- द्विभेदमंगबाह्यत्वादंगरूपत्वतः श्रुतम्। अनेकभेदम्बैकं काल्किोत्कालिकादिकम्।।-तत्त्वार्थ-श्लोकवार्तिक, 1/20/14 2. जैन साहित्य का बृहद इतिहास, भाग 1 भूमिका, पृ. 37 पंडित दलसुख मालवणिया। 3. अ- से किं तं कालियं? कालियं अणेगविहं पण्णत्तं, तंजहा-1 उत्तरज्झयणाई, 2 दसाओ, 3 कप्पो, 4 ववहारो, 5 निसीहं, 6 महानिसीहं, 7 इसिभासियाई, 8 जंबूदीवपण्णत्ती, 9 दीवसागरपण्णत्ती। "नन्दीसूत्र"-43 ब- नमो तेसिं खमासमाणं जेहिं इमं वाइअं अंगबाहिरं कालिअं भगवतं। तंजहा-1 उत्तरल्झयणाई, 2 दसाओ, 3 कप्पो, 4 ववहारो, 5 इसिभास्यिाइं, 6 निसीहं, 7 महानिसीहं 4- पक्खियसुत्त-पृ 79 (देवनन्द लालभाई पुस्तकोद्वार फण्ड सिरीज क्रमांक 99) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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