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________________ 172 (७) अरति परीषह यदि विचरण करते हुए मुनि को संयम के प्रति अरति अरुचि हो जाए तो उसमें समभाव रखे। (८) स्त्री परीषह स्त्रियों के द्वारा भोग के लिए आमंत्रित करने पर भी साधक स्थिर रहे । (९) चर्या परीषह पदयात्रा में कष्ट होने पर भी चातुर्मास काल को छोड़कर गांव नगर में मर्यादा से अधिक न रुकता हुआ सदैव भ्रमण करें। (१०) निषद्या परीषह श्मशान में, सूने घर में और वृक्ष के मूल में एकांकी मुनि अचपल भाव से रहे, दु:खित न हो। ( ११ ) शय्या परीषह ऊँची-नीची अर्थात अच्छी या बुरी शय्या ( उपाश्रय) के उपलब्ध होने पर तपस्वी मुनि दुःखित न हो। ( १२ ) आक्रोश परीषह डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी यदि कोई भिक्षु को गाली या कठोर शब्द कहे, तो भी उसके प्रति क्रोध न करें। (१३) वध परीषह यदि कोई मुनि को लकड़ी आदि से मारे या वध करें, तब भी उस पर समभाव रखें। (१४) याचना परीषह भिक्षा के लिए घर में प्रविष्ठ हुए साधु के लिए गृहस्थ के सामने हाथ फैलाना सरल नहीं है, अतः गृहवास ही श्रेष्ठ है, मुनि ऐसा न सोचे । (१५) अलाभ परीषह आहार थोड़ा मिले, या कभी न मिले तब भी मुनि समभाव रखे । तदजन्य अभाव को सहन करें। (१६) रोग परीषह शरीर में व्याधि उत्पन्न होने पर भी वेदना को समभाव पूर्वक सहन करे, दीन न बने। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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