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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी अपने लिए व साधु के लिए मिलाकर आहार बनाना। (५) स्थापना साधु के लिए खाद्य पदार्थ अलग रख देना। (६) प्राभृतिका साधु को पास के ग्रामादि में आया जानकर विशिष्ट आहार बहराने के लिए जीमण वार आदि का दिन आगे पीछे कर देना। (७) प्रादुष्करण अन्धकार युक्त स्थान में दीपक आदि का प्रकाश करके भोजन देना। (८) क्रीत साधु के लिए खरीद कर लाना। (९) प्रामित्य साधु के लिए उधार लाना। (१०) परिवर्तित साधु के लिए अट्टा-सट्टा करके लाना। (११) अभिहत साधु के लिए दूर से लाकर देना। (१२) उभिन्न साधु के लिए लिप्त पात्र का मुख खोलकर घृत आदि देना। (१३) मालापहृत ऊपर की मंजिल से या छीके बगैरह से सीढ़ी आदि से उतार कर देना। (१४) आच्छेद्य दुर्बल से छीन कर देना। (१५) अनिसृष्ट . साझे की चीज दूसरों की आत्ता के बिना देना। (१६) अध्यवपूरक साधु को गांव में आया जानकर अपने लिए बनाए जाने वाले भोजन में और बढ़ा देना।
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