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धर्मकीर्ति का समय ]
प्रस्तावना "वेदस्याध्ययनं सर्व तदध्ययनपूर्वकम् ।
वेदाध्ययनवाच्यत्वादधुनाध्ययनं यथा ॥" [ मी० श्लो० पृ० १४१] धर्मकीर्ति अपौरुषेयत्वसाधक अन्य हेतुओं के साथ ही साथ कुमारिल के इस हेतु का भी उल्लेख करके खंडन करते हैं
"यथाऽयमन्यतोऽश्रुत्वा नेमं वर्णपदक्रमम् । वक्तुं समर्थः पुरुषः तथान्योऽपीति कश्चन ॥" [प्रमाणवा० ३।२४० ]
प्रमाणवार्तिकस्वोपज्ञवृत्ति के टीकाकार कर्णकगोमि इस श्लोक की उत्थानिका इस प्रकार देते हैं-"तदेवं कर्तुरस्मरणादिति हेतुं निराकृत्य अन्यदपि साधनम् वेदस्याध्ययनं सर्व तदध्ययनपूर्वकम् इति दूषयितुमुपन्यस्यति यथेत्यादि ।" इससे स्पष्ट है कि-इस श्लोक में धर्मकीर्ति कुमारिल के वेदध्ययनवाच्यत्व हेतु का ही खंडन कर रहे हैं ।
इन उद्धरणों से यह बात असन्दिग्धरूप से प्रमाणित हो जाती है कि-धर्मकीर्ति ने ही कुमारिल का खंडन किया है न कि कुमारिल ने धर्मकीर्ति का । अतः भर्तहरि का समय सन् ६०० से ६५० तक, कुमारिल का समय सन् ६०० से ६८० तक, तथा धर्मकीर्ति का समय सन् ६२० से ६१० तक मानना समुचित होगा। धर्मकीर्ति के इस समय के समर्थन में कुछ और विचार भी प्रस्तुत किए जाते हैं
धर्मकीर्ति का समय-डॉ० विद्याभूषण आदि धर्मकीर्ति का समय सन् ६३५ से ६५० तक मानते हैं। यह प्रसिद्धि है कि-धर्मकीर्ति नालन्दा विश्वविद्यालय के अध्यक्ष धर्मपाल के शिष्य थे। चीनी यात्री हुएनसांग जब सन् ६३५ में नालन्दा पहुँचा तब धर्मपाल अध्यक्षपद से निवृत्त हो चुके थे और उनका वयोवृद्ध शिष्य शीलभद्र अध्यक्षपद पर था । हुएनसांग ने इन्हीं से योगशास्त्र का अध्ययन किया था। हुएनसांग ने अपना यात्रा विवरण सन् ६४५ ई. के बाद लिखा है। उसने अपने यात्रावृत्तान्त में नालन्दा के प्रसिद्ध विद्वानों की जो नामावली दी है, उसमें ये नाम हैं-धर्मपाल, चन्द्रपाल, गुणमति, स्थिरमति, प्रभामित्र, जिनमित्र, ज्ञान मित्र, शीघ्रबुद्ध और शीलभद्र । धर्मकीर्तिका नाम न देने के विषय में साधारणतया यही विचार है, और वह युक्तिसंगत भी है कि-धर्मकीर्ति उस समय प्रारम्भिक विद्यार्थी होंगे।
भिक्षु राहुलसांकृत्यायन जी का विचार है कि-'धर्मकीर्तिकी उस समय मृत्यु हो चुकी होगी। चूंकि हुएनसांग को तर्कशास्त्र से प्रेम नहीं था और यतः वह समस्त विद्वानों के नाम देने को बाध्य भी नहीं था, इसी लिए उसने प्रसिद्ध तार्किक धर्मकीर्ति का नाम नहीं लिया ।' राहुलजी का यह तर्क उचित नहीं मालुम होता; क्योंकि धर्मकीर्ति जैसे युगप्रधानतार्किक का नाम हुएनसांग को उसी तरह लेना चाहिए था जैसे कि उसने
१ देखो वादन्याय की प्रस्तावना ।
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