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अकलङ्क प्रन्थत्रय
[ ग्रन्थकार
ही पूरे जोर से सिद्ध करते हैं, उन्हें सुगत की सर्वज्ञता अनुपयोगी मालूम होती है । वे लिखते हैं कि
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"हेयोपादेयतत्त्वस्य साभ्युपायस्य वेदकः । यः प्रमाणमसाविष्टः न तु सर्वस्य वेदकः ॥ दूरं पश्यतु वा मा वा तत्त्वमिष्टं तु पश्यतु । प्रमाणं दूरदर्शी चेदेत गृधानुपास्महे ॥" [ प्रमाणवा० १।३४-३५ ] अर्थात- जो हेय-दुख, उपादेय-निरोध, हेयोपाय - समुदय, और उपादेयोपाय -मार्ग इन चार आर्यसत्यों का जानता है वही प्रमाण है । उसे समस्त पदार्थों का जाननेवाला होना आवश्यक नहीं है । वह दूर अतीन्द्रिय पदार्थों को जाने या न जाने, उसे इष्टतत्त्व का परिज्ञान होना चाहिए । यदि दूरवर्ती पदार्थों का द्रष्टा ही उपास्य होता हो तब तो हम को दूरद्रष्टा गृद्धों की उपासना पहिले करनी चाहिए ।
२ - कुमारिल ने शब्द को नित्यत्व सिद्ध करने में जिन क्रमबद्ध दलीलों का प्रयोग किया है धर्मकीर्ति उनका प्रमाणवार्तिक में ( ३।२६५ से आगे ) खण्डन करते हैं ।
३ - कुमारिल के 'वर्णानुपूर्वी वाक्यम्' इस वाक्यलक्षण का धर्मकीर्ति प्रमाणवार्तिक ( ३।२५९) में 'वर्णानुपूर्वी वाक्यं चेत्' उल्लेख करके उसका निराकरण करते है । ४ – कुमारिल के “नित्यस्य नित्य एवार्थः कृतकस्याप्रमाणता" [ मी० श्लो० वेदनि० श्लो० १४ ] इस वाक्य का धर्मकीर्ति प्रमाणवार्तिक में उल्लेख करके उसकी मखौल उड़ाते हैं
"" मिध्यात्वं कृतकेष्वेव दृष्टमित्यकृतकं वचः ।
सत्यार्थं व्यतिरेकेण विरोधिव्यापनाद् यदि ॥ " [ प्रमाणवा० ३।२८६ ] ५- कुमारिल के “अतोऽत्र पुन्निमित्तत्वादुपपन्ना मृषार्थता " [ मी० श्लो० चोदनासू० श्लो० १६९ ] इस श्लोक का खंडन धर्मकीर्ति ने प्रमाणवार्तिक स्वोपज्ञवृत्ति ( ३।२६१ ) में किया है- "ततो यत्किञ्चिन्मिथ्यार्थं तत्सर्वं पौरुषेयमित्यनिश्चयात् ।”
६ - कुमारिल ने “आप्तवादाविसंवाद सामान्यादनुमानता " दिग्नाग के इस वचन की मीमांसाश्लोकवार्तिक में ( पृ० ४१८ और १३ ) में समालोचना की है । इसका उत्तर धर्मकीर्ति प्रमाणवार्तिक ( ३।२१६ ) में देते हैं ।
७- कुमारिल श्लोकवार्तिक ( पृ० १६८ ) में निर्विकल्पकप्रत्यक्ष का निम्नरूप से वर्णन करते हैं
“अस्ति ह्यालोचनाज्ञानं प्रथमं निर्विकल्पकम् । बालमूकादिविज्ञानसदृशं शुद्धवस्तुजम् ॥” धर्मकीर्ति ने प्रमाणवार्तिक ( २।१४१ ) में इसका "केचिदिन्द्रियजत्वादेर्बालधीवदकल्पनाम् । आहुर्बाला" उल्लेख करके खण्डन किया है ।
८- कुमारिल वेद के प्रपौरुषेयत्वसमर्थन में वेदाध्ययनवाच्यत्व हेतु का भी प्रयोग करते हैं
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