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________________ अकलङ्कग्रन्थत्रय सहभुवो गुणाः इत्यस्य ‘सुखमाङ्लादनाकारं विज्ञानं मेयबोधनम् । शक्तिः क्रियानुमेया स्याङ्नः कान्तासमागमे ॥' इत्युदाहरणं स्यात्" इस अवतरण से मालूम होता है कि'सुखमालादनाकारं ' कारिका न्यायविनिश्चय की है । पर विवरण में यह कारिका मूल की नहीं मालूम होती; क्योंकि एक तो इसका व्याख्यान नहीं किया गया, दूसरे विवरण (पृ० २३० B.) में यह कारिका ‘तदुक्तं स्याद्वादमहार्णवे' लिखकर बिना किसी उत्थानवाक्य के उद्धृत पाई जाती है। हाँ, इतना विश्वास अवश्य है कि-यह संग्रह शुद्धि के बहुत पास होगा। प्रमाणसंग्रह-मैं पहिले लिख आया हूँ कि-पं० सुखलालजी और मुनि पुण्यविजयजी के प्रयत्न से इसकी प्रतिलिपि प्राप्त हुई। उसी प्रतिलिपि के अनुसार प्रेसकापी की गई थी। प्रेसकापी का ताड़पत्र से मिलान तथा कुछ शुद्धपाठों की सूचना श्रीमान् मुनि पुण्यविजयजी ने की। प्रमाणसंग्रह की यह एक मात्र प्रति अत्यन्त अशुद्ध है । इसकी मूलप्रति के अनुसार शुद्धता के लिए मुनि पुण्यविजयजी ने इसके प्रूफों का मिलान भी ताडपत्र की प्रति से किया है । इसका परिचय भी मुनिजी ने इस प्रकार लिखा है पाटन के संघवी के पाडे के ताड़पत्रीय पुस्तक भंडार की यह प्रति है। डब्बा नं० १३५, प्रति नं० २ है। इस पोथी में स्त्रीनिर्वाण केवलिभुक्ति आदि निम्नलिखित १४ प्रकरणात्मक ग्रन्थ हैं १-स्त्रीनिर्वाण, पत्र ११-१३ तक, संस्कृत, शाकटायनकृदंतपादकृत, श्लोक ४५। २-केवलिभुक्ति, पत्र १३-१५ तक, संस्कृत, शाकटायनकृदन्तपादकृत, श्लोक ३३ । ३-मोक्षोपदेशपञ्चाशक, पत्र १५-१८ तक, संस्कृत, मुनिचन्द्रसूरिकृत, श्लोक ५१ । ४-प्रमाणसंग्रह, पत्र ६०-१२ तक, संस्कृत, अकलङ्कदेवकृत । ५-ईश्वरकर्तृत्वप्रकरण, पत्र १३-१८ तक, संस्कृत, चन्द्रप्रभकृत । ६-ब्राह्मणजातिनिराकरण, पत्र १८-१०४ तक, संस्कृत । ७-बोटिकप्रतिषेध, पत्र १०४-१०८ तक, संस्कृत, हरिभद्रसूरिकृत । ८-सर्वज्ञव्यवस्थाप्रकरण, पत्र १०८-१२१ तक, संस्कृत । ई-क्षणिकवादनिरासप्रकरण, पत्र १२२-१२७ तक, संस्कृत । १०-गणकारिका रत्नटीकासमेत, पत्र १२८-१५५, संस्कृत, भासर्वज्ञकृत । ११-यमप्रकरण, पत्र १५५-१५६ तक, संस्कृत, विशुद्धमुनि षड्गोचर शिष्यकृत, श्लोक २१ । १२-लकुलिशप्रार्थना, पत्र १५.७, संस्कृत, श्लोक १३ । १३-कारणपदार्थ, पत्र १५७-१५६ तक, संस्कृत, श्लोक ३६ । १४-पुराणोक्तस्कन्दनामानि, पत्र १५६, संस्कृत, श्लोक ७ । इनमें प्रमाणसंग्रह पत्र ६० से १२ में है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002504
Book TitleAkalanka Granthtrayam
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorMahendramuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1969
Total Pages390
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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