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नयनिरूपण ]
शब्द-काल, कारक, लिंग तथा संख्या के भेद से शब्दभेद द्वारा भिन्न अर्थों को ग्रहण करनेवाला शब्दनय है । शब्दनय के अभिप्राय से अतीत अनागत एवं वर्त्तमानकालीन क्रियाओं के साथ प्रयुक्त होनेवाला एक ही देवदत्त भिन्न हो जाता है । 'करोति क्रियते ' आदि कर्तृ- कर्मसाधन में प्रयुक्त भी देवदत्त भिन्न भिन्न है । 'देवदत्त देवदत्ता ' आदि लिंगभेद से प्रयोग में आनेवाला देवदत्त भी एक नहीं है । एकवचन, द्विवचन तथा बहुवचन में प्रयुक्त देवदत्त भी पृथक् पृथक् है । इसकी दृष्टि से भिन्नकालीन, भिन्नकारकनिष्पन्न, भिन्नलिङ्गक एवं भिन्नसंख्याक शब्द एक अर्थ के वाचक नहीं हो सकते । शब्दभेद से अर्थभेद होना ही चाहिए। वर्त्तना - परिणमन करनेवाला तथा स्वतः परिणमनशील द्रव्यों के परिणमन में सहायक होनेवाला काल द्रव्य है । इसके भूत, भविष्यत् और वर्त्तमान, ये तीन भेद हैं । केवल द्रव्य, केवल शक्ति, तथा अनपेक्ष द्रव्य और शक्ति को कारक नहीं कहते; किन्तु शक्तिविशिष्ट द्रव्य को कारक कहते हैं । लिंग चिह्न को कहते हैं । जो गर्भ धारण कर सके वह स्त्री, जो पुत्रादि की उत्पादक सामर्थ्य रखे वह पुरुष, तथा जिसमें ये दोनों सामर्थ्य न हों वह नपुंसक कहा जाता है । कालादि के ये लक्षण अनेकान्तात्मक अर्थ में ही बन सकते हैं । एक ही वस्तु विभिन्न सामग्री के मिलने पर षट्कारकरूप से परिणमन कर सकती है । कालादिभेद से एक द्रव्य की नाना पर्यायें हो सकती हैं । एकरूप - सर्वथा नित्य या अनित्य वस्तु में ऐसा परिणमन नहीं हो सकता; क्योंकि - सर्वथा नित्य में उत्पाद और व्यय तथा सर्वथा क्षणिक में स्थैर्य नहीं है । इस तरह कारक व्यवस्था न होने से विभिन्न कारकों निष्पन्न स्त्रीलिङ्ग, पुल्लिङ्ग आदि की ब्यवस्था भी एकान्त पक्ष में नहीं हो सकती । इस तरह कालादि के भेद से अर्थभेद मानकर शब्द नय उनमें विभिन्न शब्दों का प्रयोग मानता हैं । कालादि भेद से शब्दभेद होने पर भी अर्थभेद नहीं मानना शब्दनयाभास है ।
प्रस्तावना
समभिरूढ - एक कालवाचक, एक लिङ्गक तथा एक संख्याक भी अनेक पर्यायवाची शब्द होते हैं । समभिरूढ नय उन प्रत्येक पर्यायवाची शब्दों के द्वारा अर्थ में भेद मनता है । इस नय के अभिप्राय से एक लिंगवाले इन्द्र, शक्र तथा पुरन्दर इन तीन शब्दों में प्रवृत्तिनिमित्त की विभिन्नता होने से विभिन्नार्थवाचकता है । शक्रशब्द का प्रवृत्तिनिमित्त शासनक्रिया, इन्द्रशब्द का प्रवृत्तिनिमित्त इन्दनक्रिया तथा पुरन्दरशब्द का प्रवृत्तिनिमित्त पूर्दारणक्रिया है । अतः तीनों शब्द विभिन्न अवस्थाओं के वाचक हैं । शब्दनय में एकलिंगवाले पर्यायवाची शब्दों में अर्थभेद नहीं था, पर समभिरूढ नय में विभिन्न प्रवृत्तिनिमित्त होने से एकलिङ्गक पर्यायवाची शब्दों में भी अर्थभेद होना अनिवार्य है । पर्यायवाची शब्दों की दृष्टि से अर्थ में भेद नहीं मानना समभिरूढाभास है ।
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एवम्भूतनय - क्रिया के भेद से भी अर्थभेद माननेवाला एवम्भूतनय है । यह नय क्रियाकाल में ही तत्क्रियानिमित्तक शब्द के प्रयोग को साधु मानता है। जब इन्द्र इन्दन
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