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इस तरह कुमारपाल की दिनचर्या नियत थी । विशेष अवसरों पर इन दिनचर्या में जो फेरफार होता था वह प्रासंगिक होता था । प्रजाजनों के आनन्द के लिए गजयुद्ध या मलयुद्ध एवं ऐसे ही दूसरे खेलों का कार्यक्रम जब होता था उस समय राजा अपने राजवर्ग के साथ वहाँ बैठता था और खेलों को देखता था और अपने कार्यक्रम में फेरफार करता था । रथयात्रा आदि धार्मिक उत्सवों में भी वह इसी प्रकार भाग लेता था । कुछ पर्व दिवसों के प्रसङ्ग पर रात्रि में मन्दिरों में नाट्यप्रयोग या संगीतोत्सव होते थे उनमें भी वह उपस्थित रहता था ।
विद्याप्रेम कुमारपाल के जीवन पर दृष्टिपात करने से पता चलता है कि वह सिद्धराज जितना प्रतिभाशाली और विद्यारसिक तो न था, तो भी बुद्धिमान् तो था ही । उसे युवावस्था में विद्याप्राप्ति का अवसर ही कहाँ मिला था ? उसकी युवावस्था का मुख्य भाग सिद्धराज से अपने को बचाने के लिए भटकने और कष्ट सहने में ही व्यतीत हुआ था । पचास वर्ष की उम्र में उसके भाग्य का परिवर्तन हुआ और वह गुजरात के विशाल साम्राज्य का भाग्यविधाता बना। राज्यप्राप्ति के पश्चात् भी उसके ५-६ वर्ष तो विपक्षियों को जीतने में ही गये अर्थात् ५६-५७ वर्ष की अवस्था में उसका सिंहासन स्थिर हुआ और उसके प्रताप का सूर्य सहस्रकिरण के समान तपने लगा । इस उम्र में अध्ययन के लिए कितना अवकाश मिल सकता था ! तथापि प्रबन्धकार कहते हैं कि इतना होने पर भी अवसर मिलने पर अति परिश्रम करके उसके संस्कृत का अच्छा अभ्यास कर लिया था और उससे वह विद्वानों की तत्त्वचर्चा में यथेष्ट भाग ले सकता था । हेमचन्द्राचार्य के द्वारा उसी के लिए बनाये गये योगशास्त्र और वीतरागस्तोत्र का वह प्रतिदिन स्वाध्याय करता था । योगशास्त्र में हेमचन्द्र द्वारा किये गये उल्लेख से प्रतीत होता है कि उसे योग की उपासना प्रिय थी और इसलिए उसने कई योगशास्त्रों का परिशीलन किया था । 'त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र' नामक ग्रन्थ जो तीर्थंकर आदि के जीवन पर प्रकाश डालता है, हेमचन्द्राचार्य ने कुमारपाल की खास प्रेरणा से ही बनाया था, यह तो ऊपर बता दिया गया है । इससे प्रतीत होता है कि उसे ऐसे ग्रन्थ पढ़ने का शौख था । कदाचित् प्राचीन बातें जानने की जिज्ञासा उसके अन्दर बहुत परिणाम में विद्यमान थी । राज्यप्राप्ति के पहले एक बार जब वह भटकता भटकता चित्तौड़ के किले पर जा पहुँचा तो वहाँ पर स्थित एक दिगम्बर विद्वान से उसने किले के विषय में सारी हकीकत पूछी थी। उसी प्रकार राज्यप्राप्ति के पश्चात् जब उसने एक बड़ा संघ लेकर, गिरनार की यात्रा की थी और जूनागढ़ में दशदशार मण्डप आदि प्राचीन स्थल देखकर उसने उस विषय में हेमचन्द्राचार्य से प्राचीन विवरण बताने की विज्ञप्ति की थी।
आचार्य हेमचन्द्र का प्रभाव कुमारपाल बहुत भावुक प्रकृतिवाला पुरुष था । भावुक होने के कारण ही वह इस
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