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में शिकार की बात तो दूर रही खटमल और जूं जैसे जीवों को, अन्त्यज जन भी दुःख नहीं पहुँचा सकेंगे। इस प्रकार मृगया के विषय में निषेधाज्ञा होने पर, मृग आदि पशु निर्भय होकर बाड़े में गायों की तरह चरने लगेंगे। इस प्रकार जलचर प्राणियों, पशुओं और पक्षिओं के लिए वह सदा अमारि रखेगा और उसकी ऐसी आज्ञा से आजन्म माँसाहारी भी दुःखप्न की तरह माँस को भूल जाएँगे।
कुमारपाल की ऐसी अमारिप्रिय वृत्ति देख कर उसके पड़ोसी और अधीन राजाओं ने भी अमारि प्रवर्तन की उद्घोषणा करने के लिए कई आज्ञाएँ जाहिर की थी जिसके प्रमाण में कई शिलालेख मारवाड़ की परली सरहद में मिलते हैं ।
कुमारपाल की इस अहिंसाप्रवर्तक नीतिका यह फल है कि वर्तमान में, जगत् में सबसे ज्यादा अहिंसक प्रजा गुजराती प्रजा है और सबसे अधिक परिमाण में अहिंसा धर्म का पालन गुजरात में होता है । गुजरात में हिंसक-याग प्रायः तभी से बन्द हो गए हैं और देवी देवताओं के लिए होने वाला पशु-वध भी, दूसरे प्रान्तों की तुलना में, गुजरात में बहुत कम है। प्रायः गुजरात का सम्पूर्ण शिष्ट और उच्च समाज चुस्त निरामिषभोजी है। गुजरात का प्रधान किसान वर्ग भी माँसत्यागी है। भले ही अतिशयोक्ति हो, और उसका उपहास भी हो, परन्तु मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि इसी पुण्यमय परम्परा के प्रताप से जगत् के सबसे श्रेष्ठ अहिंसामूर्ति महात्मा को जन्म देने का अद्वितीय गौरव भी गुजरात को प्राप्त हुआ है ।
मद्यपान का निषेध जीवहिंसा के साथ साथ जिन दूसरी पाप प्रवृत्तियों का कुमारपाल ने अपनी प्रजा में निषेध कराया था उनमें मुख्य मद्यपान की प्रवृत्ति भी थी । मद्य मनुष्य जाति का एक बहुत बड़ा शत्रु है, यह सब जानते हैं । पौराणिक काल में यादवों का नाश भी मद्यपान से ही हुआ था ऐसा पुराणों में वर्णन आता है । ऐतिहासिक काल में भी मद्यपान के कारण अनेक सम्राट और उनके साम्राज्य नष्ट होने के उदाहरण यथेच्छ प्राप्त हो सकते हैं। वर्तमान में क्षत्रिय जाति का जो भयंकर पतन हुआ है और हो रहा है, उसमें मद्य का ही सबसे ज्यादा हाथ है । हमारी गरीब और परिश्रमी जनता की जो इतनी अवनत दशा हुई है उसमें मद्य भी एक मुख्य कारण है, यह हम लोग अच्छी तरह जानते हैं। मद्य के इस बूरे असर को लक्ष्य में रख कर मध्य काल में कितने ही मुसलमान सम्राटों ने इसका जो तीव्र निषेध किया था उससे इतिहास के पाठक अपरिचित नहीं है। अमेरिका जैसे भौतिक संस्कृति के उपासक राष्ट्र ने भी इस बीसवीं सदी में इस उन्मादक मद्यपान को रोकने के लिए राजाज्ञा का उपयोग किया है ।
प्रबन्धगत प्रमाणों से प्रतीत होता है कि कुमारपाल जैन धर्मानुयायी होने से पहले माँसाहार तो करता था लेकिन मद्यपान की तरफ उसे हमेशा से घृणा रही है। यहाँ तक कि
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