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६५ इनकी भूख नहीं है। अगर उसको भूख होती तो इन पशुओं का निश्चय रूप से उसने भक्षण किया होता । इससे पता चलता है कि माता के बदले ये पूजारी इन पामर पशुओं के माँस के भूखे हैं। लेकिन यह भूख अब मेरे राज्य में नहीं मिट सकती ।' यह कहकर राजा ने देवीदेवाताओं के निमित्त होनेवाली जीवहिंसा का भी समूल उच्छेद कर दिया ।
कुमारपाल की इस अहिंसा प्रवर्तक साधना की सफलता देखकर ब्राह्मण पण्डित श्रीधर एक विशेष प्रसंग पर हेमाचार्य की स्तुति करता हुआ कहता है कि
पूर्वं वीरजिनेश्वरे भगवति प्रख्याति धर्मं स्वयं, प्रज्ञावत्यभयेऽपि मन्त्रिणि न यां कर्तुं क्षमः श्रेणिकः । अक्लेशेन कुमारपालनृपतिस्तां जीवरक्षां व्यधात्;
यस्यासाद्य वचस्सुधां स परमः श्रीहेमचन्द्रो गुरुः ॥ अर्थात्-साक्षात् भगवान महावीर जिसको धर्म का बोध करनेवाले थे और अभयकुमार जैसा प्रज्ञावान् पुत्र स्वयं जिसका मन्त्री था वह राजा श्रेणिक भी जो जीवरक्षा न कर सका वह जीवरक्षा, जिनके वचनामृतका पान करके कुमारपाल राजा अनायास ही साध सका, वे हेमचन्द्र वास्तव में एक परम महान् गुरु हैं ।
स्वयं आचार्य हेमचन्द्र भी, उक्त महावीरचरित्र नामक पुराणग्रन्थ में महावीर के मुख से कुमारपाल के विषय में भविष्यकथनरूप से वर्णन करते हुए लिखते हैं कि
पाण्डुप्रभृतिभिरपि त्यक्ता या मृगया न हि । स स्वयं त्यक्ष्यति जनः सर्वोऽपि तदाज्ञया ॥ हिंसानिषेधके तस्मिन् दूरेऽस्तु मृगयादिकम् ।
अपि मत्कुट-यूकादि नान्त्यजोऽपि हनिष्यति ॥ तस्मिन्निषिद्धे पाप वरण्ये मृगजातयः । सदाऽप्यविघ्नरोमन्था भाविन्यो गोष्ठधेनुवत् ॥ जलचरस्थलचरखेचराणां स देहिनाम् । रक्षिष्यति सदामारिं शासने पाकशासनः ॥ ये चाजन्मापि मांसादास्ते मांसस्य कथामपि ।
दुःखप्नमिव तस्याज्ञावशान्नेष्यन्ति विस्मृतिम् ॥ भगवान् महावीर अपने शिष्यों से कहते हैं कि भविष्य में कुमारपाल राजा होनेवाला है उसकी आज्ञा से सब मनुष्य मृगया का त्याग करेंगे । जिस मृगयाका पाण्डु के सदृश धर्मिष्ठ राजा भी त्याग न कर सके और न करवा सके । हिंसा के निषेध करनेवाले इस राजा के समय
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