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________________ ५८ इसका तनिक भी लोभ न करते हुए इस अधर्म और प्रजापीडक प्रथा को हमेशा के लिए बन्द कर दिया । मन्त्री यशपाल ने अपने नाटक में इससे भी बढ़कर हृदयङ्गम वर्णन किया है । माचार्य ने तो अमुक घटना को लक्ष्य को रखकर ही काव्य की पद्धति के अनुसार सिर्फ सूचना मात्र की है । यश: पाल ने उसमें कई ऐतिहासिक घटनाओं को भी अन्तर्निहित किया है। यह नाटक एक रूपक है इसलिए इसमें ज्यादा वास्तविकता का तो न होना स्वाभाविक ही है । यश:पालका वर्णन इस प्रकार है- 'एकदिन जब राजा अपने स्थान पर बैठा हुआ था उसने एक विशाल मकान से स्त्री का करुण रुदन सुना । थोड़ी देर बाद नगर के चार महाजनों ने आकर राजा से निवेदन किया कि नगर का कुबेर नामक एक कोट्याधीश निःसन्तान मर गया है इस लिए उसकी सम्पत्ति लेने के लिए अधिकारी पुरुष भेजिए और हम लोगों को उसकी अन्त्येष्टि क्रिया करने की आज्ञा प्रदान कीजिए । सेठ की मृत्यु का समाचार सुनकर राजा बहुत उद्विग्न होता है और जीवन की अस्थिरता का गम्भीर विचार करने लगता है। साथ ही साथ मृत के कुटम्ब की करुण दशा और राज्य की क्रूर नीति का बीभत्स चित्र देखता है । आशाबन्धादहह सुचिरं संचितं क्लेशलक्षैः, केयं नीतिर्नृपतिहतका यन्मृतस्वं हरन्ति । क्रन्दन्नारीजघनवसनाक्षेपपापोत्कटानाम्; आः किं तेषां हृदि यदि कृपा नास्ति तत् किं त्रपाऽपि ॥ राजा कुछ विचार कर कहता है कि मैं वहीं आता हूँ । तत्पश्चात् राजा पालकी में बैठकर राजभवन से भी अधिक सुशोभित और विशाल ऐसे कुबेर के भवन के पास आया । महल के ऊपर कोट्यधीशता का सूचन करनेवाली नाना प्रकार की ध्वजाएँ फहरा रही थीं । एक दरवाजे पर शहर के सैंकडों सेठ शोकविह्वल दिखाई पड़ रहे थे और घर के अन्दर से रुदन का करुण स्वर आ रहा था। घर के बाहर खड़े हुए सेठों को देखर राजाने अग्रणी सेठ से पूछा कि सब लोग बाहर क्यों खड़े हुए हैं । सेठ का उत्तर था कि हम लोग राजा की आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे हैं । राजा ने कहा इसमें राजाज्ञा की क्या आवश्यकता है ? सेठने उत्तर दियाराज्यनियमानुसार जब राज्याधिकारी सारी सम्पत्ति को अपने अधिकार में कर ले उसके बाद हमें घर में जाना चाहिए । अन्यथा हम लोग दण्ड के भागी होते हैं। राजा पालकी से ऊतर कर घर में जाता है और सेठ उसकी सारी ऋद्धि समृद्धि का उसे परिचय कराता है । राजमहलों में भी अलभ्य ऐसी वस्तुएँ सेठ के मकान में पा कर राजा आश्चर्यचकित हो जाता है । तत्पश्चात् राजा कुबेर की माता के पास जा कर बैठता है और कुबेर की मृत्यु के बारे में सारी हकीकत पूछता है । कुबेर के मित्र सारी हकीकत कहते हैं- 'परदेश में व्यापार चलाने के लिए कुबेर पाटन से भरुच गया था और वहाँ से ५०० नावों में माल भरकर परदेश चला गया था । वहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002501
Book TitleKumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year2008
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size21 MB
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