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राजनीति के अनुसार लावारिस पुरुष की सम्पत्ति उसके मरने के बाद राजा की हो जाती थी
और इस कारण मरने वाले के, माता, स्त्री आदि आश्रित जन अनाथ और निराधार बन जाते थे तथा मृत्यु से भी अधिक दुःख भोगते थे । इस क्रूर राजनीति से कई अबलाएँ जीवित रहने पर भी मरी हुई के समान हो जाती थीं । जले पर नमक छिडकनेवाली इस दुष्ट प्रथा को कुमारपाल ने अपने राज्य में एक आदेश निकाल कर बन्द करा दिया । कदाचित् ऐसा कार्य अशोक ने भी न किया हो ।
कुमारपाल को इस कुनीति की निष्ठुरता का पता किस भाँति चला उसका वर्णन हेमचन्द्राचार्य अपने व्याश्रय में इस प्रकार करते हैं
किसी रात्रि के समय जब राजा अपने महल में सो रहा था तब उसे दूर से एक स्त्री का बहुत करुण क्रन्दन सुनाई पड़ा । इस बात को जानने के लिए चौकीदार के नील वर्ण वस्त्र धारण कर राजा महल से निकला और कोई न पहचान ले इस तरह धीरे-धीरे उस करुण रुदन की तरफ चला गया । वह जा कर क्या देखता है कि पेड के नीचे एक स्त्री गले में फन्दा डालकर मरने की तैयारी कर रही है और रो भी रही है। राजा ने धीरे से उसके पास जा कर आदर पूर्वक मधुर वचनों से पूछा कि क्या बात है। विश्वास पा कर स्त्री ने कहा-'मेरे पतिदेव इस शहर में परदेश से व्यापार करने के लिए आए थे और मैं भी उनके साथ थी । इस सुशासित शहर में हम लोगों ने व्यापार करते करते बहुत सम्पत्ति इकट्ठी कर ली। इसी बीच में मैंने एक पुत्र को जन्म दिया। हम लोगों ने उसका भरण-पोषण किया । उसे शिक्षित बनाया। योग्य उम्र में एक अच्छे कुल की लड़की के साथ उसका पाणिग्रहण करा दिया । जब मेरा पुत्र वीस वर्ष की अवस्था का हुआ तब उसके पिता स्वर्ग सिधार गए और उनके शोक से पुत्र इतना विह्वल हो गया कि वह भी थोड़े दिनों बाद मुझे अनाथ बना कर पिता के मार्ग पर चला गया । अब मेरी सारी सम्पत्ति नियमानुसार राज्य की सम्पत्ति हो जायेगी और मेरा जीवन बरबाद हो जायेगा । मैं उस करुण अवस्था को नहीं देखना चाहती इसीलिए मरना चाहती हूँ।' राजा स्त्री के इस कथन को सुनकर करुणार्द्र हो ऊठा और उसको आश्वासन देते हुए कहने लाग–'माता ! तुम अपने घर जाओ और इस तरह अपना अपघात मत करो । मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि राजा तुम्हारी सम्पत्ति नहीं लेगा । तुम अपने धन से यथेष्ट दान पुण्य करके अपना कल्याण करो ।' इतना कहकर राजा ने अपने महलों की ओर चल दिया और सवेरा होने पर मन्त्रियों को बुला कर अपने राज्य में यह घोषणा करने की आज्ञा दी कि'प्राचीन जमाने से चली आई यह राज्यप्रथा, कि लावारिस पुरुष की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति राज्य की हो जाय, बन्द की जाती है और आज से यह राजाज्ञा जाहिर की जाती है कि ऐसी सम्पत्ति राज्य की कोई भी कर्मचारी न ले ।' राजा की आज्ञानुसार मन्त्रियों ने इस आज्ञापत्र की घोषणा सारे राज्य में करा दी और मतक-धन लेना बन्द कर दिया । प्रबन्ध कर्ताओं के अनुमान से इससे राज्य में एक करोड की वार्षिक आमदनी होती थी परन्तु राजा ने For Private & Personal Use Only
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