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उपसंहार
- पाठको ! सूरि भगवान् के इस चरित्र-सारांश से आपको यह ज्ञात हो जायेगा कि, वे कैसे प्रभावशाली पुरुष थे, उनमें कैसे कैसे गुणों का सन्निपात हुआ था ? सचमुच ही वे एक अद्वितीय महात्मा थे। उनके गुणों का वर्णन करते हुए प्रो० पीटरसन लिखते हैं कि-"हेमचन्द्र एक बड़े भारी आचार्य थे । दुनिया के किसी भी पदार्थ पर उनका तिल मात्र भी मोह नहीं था, तथा उस महापुरुषने अपनी बड़ी आयु और जोखमदार जिन्दगी को बूरे कामों में न लगा कर, संसार का भला करने में बीताई थी । उनके किये हुए सुकृत्यों के बदल इस देश की प्रजा को उनका बड़ा भारी उपकार मानना चाहिए।" विदेशी विद्वान् प्रोफेसर के इन वचनों में हम इतने शब्द और मिलायेंगे, और कहेंगे कि-"वे एक बड़े भारी महात्मा थे, पूर्ण योगी थे, उत्कृष्ट जितेन्द्रिय थे, अत्यन्त दयालु छे, महापरोपकारी थे, पूरे निःस्पृही थे, निष्पक्षपाती थे, सत्य के उपासक थे, और कलिकाल में सर्वज्ञ थे ।" आप के जीवन से, संसार का बहुत उपकार हुआ, जैनधर्म का उद्धार हुआ और सत्य का प्रचार हुआ । नमन है महात्मन् ! तुम्हारे पवित्र जीवन को ! वंदन है भगवन् ! आपके सम्यग् ज्ञान, दर्शन और चारित्र को !!
राजर्षि श्री कुमारपाल देव ।
सत्त्वानुकम्पा न महीभुजां स्यादित्येष क्लृप्तो वितथः प्रवादः । जिनेन्द्रधर्म प्रतिपद्य येन, श्लाघ्यः स केषां न कुमारपालः ||-श्रीसोमप्रभाचार्यः ।
व्यावहारिक जीवन महाराज कुमारपाल देव इस कलियुग में एक अद्वितीय और आदर्श नृपति थे । वे बड़े न्यायी, दयालु, परोपकारी, पराक्रमी और पूरे धर्मात्मा थे।
विक्रम संवत् ११४९ में इनका जन्म हुआ था और सवत् ११९९ में राज्याभिषेक हुआ था । एक पुरातन पट्टावली में राज्याभिषेक की तिथि 'मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी' लिखी है। राज्यप्राप्ति के बाद लगभग १० वर्षपर्यन्त आपने राज्य की सुव्यवस्था करने का, और उसकी सीमा बढ़ाने का प्रयत्न किया । दिग्विजय करके आपने अनेक बड़े बड़े राजाओं को अपनी प्रचण्ड आज्ञा के अधीन किये । आप अपने समय में एक अद्वितीय विजेता और वीर राजा थे। भारतवर्ष में, उस समय आपकी बराबरी करने वाला और कोई राजा नहीं था । आपका राज्य बहुत बड़ा था । श्री हेमचन्द्राचार्य ने 'महावीरचरित' में आपकी आज्ञा का पालन "उत्तर दिशा में तुरकस्थान, पूर्व में गंगा नदी, दक्षिण में विंध्याचल और पश्चिम में समुद्र पर्यन्त'' के देशों में होना लिखा है । प्रोफेसर मणीलाल नभुभाई द्विवेदी लिखते हैं कि-"गुजरात यानि
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