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________________ २९५ कुमारपालप्रतिबोधसक्षेपः ६६५०. कुमारपालदिनचर्यावर्णनम् । तो पंचनमुक्कारं सुमरंतो जग्गए रयणिसेसे ।। *चिंतइ अय दो वि हिय[ए] देवगुरुधम्मपडिवत्तिं ।।५२४॥ काऊण कायसुद्धि कुसुमामिस-थोत्तविविहपूयाए । पुज्जइ जिणपडिमाओ पंचहिं दंडेहिं वंदेइ ॥५२५॥ निच्चं पच्चक्खाणं कुणइ जहासत्ति सत्तगुणनिलओ । सयलजयलच्छितिलओ तिलयावसरम्मि उवविसइ ॥५२६।। करिकंधराधिरूढो समत्तसामंतमंतिपरियरिओ । वच्चइ जिणिंदभवणं विहिपुव्वं तत्थ पविसेइ ॥५२७।। अट्ठप्पयारपूयाइ पूइडं वीयरायपडिमाओ । पणमइ महिनिहियसिरो थुणइ पवित्तेहिं थोत्तेहिं ॥५२८।। गुरुहेमचंदचलणे चंदणकप्पूरकणयकमलेहिं । संपूईऊण पणमइ पच्चक्खाणं पयासेइ ॥५२९॥ गुरुपुरओ उवविसिउ परलोयसुहावहं सुणइ धम्मं । गंतूण गिहं वियरइ जणस्स विन्नत्तियावसरं ॥५३०।। विहियग्गकूरथालो पुणो वि घरचेइयाइं अच्चेइ । कयउचियसंविभागो भुंजेइ पवित्तमाहारं ।५३१।। भुत्तुत्तरं सहाए वियारए सह बुहेहिं सत्थत्थं । कइया वि निवनियुत्तो कहइ कहं सिद्धवालकई ॥५३२॥ 10 15 ., [अत्र कविसिद्धपालकथिता अपभ्रंशभाषाबद्धा जीवमनःकरणसंलापकथा ज्ञातव्या ] 20 अन्नदिणेऽन्नविबुहेण य जंपियं देव किंपि पुच्छिस्सं । रन्ना भणियं पुच्छसु बुहो पयट्टो भणिउमेव ॥५३३।। [अत्र कश्चिदन्यविबुधकथितं विक्रमादित्यकथानकं विज्ञेयम् ।] * . अस्पष्टार्थोऽयं पाठः । जिनमण्डनगणिविरचितकुमारपालप्रबन्धे तु 'चिंतइ य दो वि हियए' (पृ० १०७ प्र०) इत्येवमुपलभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002501
Book TitleKumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year2008
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size21 MB
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