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________________ २८६ कुमारपालचरित्रसङ्ग्रहः पुव्वपरिक्कम्मियचित्तकम्मजुग्गा जहा भवे भित्ती । . तह विहियदेसविरई काउमलं सव्वविरई पि ॥४४०॥ भणियं च 'एसा वि देसविरई सेविज्जइ सव्वविरइकज्जेण । पायमिमीए परिकम्मियाण इयरा थिरा होइ ॥४४१॥ पंच उ अणुव्वयाइं गुणव्वयाइं हवंति तिन्नेव । सिक्खावयाइँ चत्तारि देसविरई दुवालसहा ।।४४२॥ तत्र 10 $३२. प्राणातिपातविरत्युपदेशः । संकप्पपुव्वयं जं तसाण जीवाण निरवराहाण । दुविह-तिविहेण रक्खणमणुव्वयं बिंति तं पढमं ॥४४३।। चिरजीवी वररूवो नीरोगो सयललोगमणइट्ठो । सो होइ सुगइगामी सिवो व्व जो रक्खए जीवे ॥४४४।। ___15 [अत्र शिवकथानकमनुसन्धेयम् ।] ६६३४. मृषावादविरत्युपदेशः । जं गो-भू-कन्ना-कूडसक्खि-नासापहारअलियस्स । दुविह-तिविहेण वज्जणमणुव्वयं बिंति तं बीयं ॥४४५।। भुयगो व्व अलियवाई होइ अवीसासभायणं भुवणे । पावइ अकित्तिपसरं जणयाण वि जणइ संतावं ॥४४६॥ सच्चेण फुरइ कित्ती सच्चेण जणम्मि होइ वीसासो । सग्गा-ऽपवग्गसुहसंपयाउ जायंति सच्चेण ॥४४७॥ कुरुते यो मृषावादविरतिं सत्यवाग्व्रतः । मकरध्वजवद्भद्रमुभयत्रापि सोऽश्नुते ॥४४८|| 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002501
Book TitleKumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year2008
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size21 MB
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