________________
३५
I
एक आधारभूत ग्रन्थ है । इसका इंग्रेजी में अनुवाद करा कर, बंगाल की 'रॉयल एशियाटिक सोसाइटी' ने प्रकट किया है। इसके अन्त में कुमारपाल व हेमचन्द्राचार्य का विस्तृत वर्णन है। संवत् १३६१ के फाल्गुन मास की शुक्ल पूर्णिमा को, काठीयावाड के प्रसिद्ध नगर 'वढवाण' में इसकी समाप्ति हुई थी ।
४. प्रभावकचरित्र, प्रभाचन्द्राचार्यकृत | इस ग्रन्थ में, जगत् में जैनधर्म की प्रभावना करनेवाले अनेक प्रभावक पूर्वर्षियों के जीवन चरित्र हैं । सारा ग्रन्थ संस्कृत पद्यमय है । कविता बड़ी रमणीय है । संस्कृत-साहित्य के प्रेमियों को अवश्य अवलोकन करने लायक है । इसमें पूर्व काल के २३ जैन महात्माओं का वर्णन है । अन्त में हेमचन्द्राचार्य का भी विस्तार से उल्लेख है ।
५. कुमारपालचरित्र, जयसिंहसूरिरचित । ६. कुमारपालचरित, श्रीसोमतलिकसूरिकृत । ७. कुमारपालचरित्र, श्रीचारित्रसुन्दरकृत । ८. कुमारपालचरित्र, हरिश्चन्द्रकृत ( प्राकृत ? )। ९. चतुर्विंशतिप्रबन्ध, श्रीराजशेखरसूरिकृत ।
१०. कुमारपालरास (गुजराती) श्रीजिनहर्षकृत ।
११. कुमारपालरास (गुजराती) श्रावक ऋषभदासरचित ।
इन पुस्तकों के अतिरिक्त 'विविधतीर्थकल्प' 'उपदेशतरंगिणी' तथा 'उपदेशप्रासाद' आदि बहुत से अन्य ग्रन्थों में भी इन महापुरुषों का वर्णन मिलता है ।
इस ग्रन्थ- गणना में हमें अभी एक और महत्त्ववाले ग्रन्थ का नाम लिखना बाकी हैजो कि इस प्रस्तुत चरित्र का मूलभूत है । इसका नाम है 'कुमारपालप्रबन्ध' । संवत् १४९९ में, तपगच्छाचार्य महाप्रभावक श्रीसोमसुन्दरसूरीश्वरजी के सुशिष्य श्रीजिनमंडन गणि ने इसकी रचना की है । सारा ग्रन्थ सरल और सरस संस्कृतमय है । गद्य और पद्य से मिश्रित है । बीच-बीच में प्राकृत पद्य भी प्रसंगवश उद्धृत किए गए हैं। इस ग्रन्थ का चरित्रात्मक भाग, केवल कवि की कल्पना मात्र है, ऐसा नहीं है, परन्तु यथार्थ ऐतिहासिक घटना स्वरूप है । इसका प्रमाण पाठकों को इससे मिल सकेगा कि, इस चरित्र को विश्वसनीय और उपयोगी समझकर, बडौदा के विद्याविलासी नृपति श्रीसयाजीराव महाराज ने पारितोषिक देकर, विद्वान् श्रावक श्रीयुत मगनलाल चुनिलाल वैद्य ( बडौदा) द्वारा, गुजराती भाषा में अनुवाद करा कर, राज्य की तरफ से छपवा कर प्रकाशित किया है । इस पुस्तक में गुजरात के इतिहास की बहुत सी उपयोगी बाते हैं । अणहिलपुर - पाटन नगर की स्थापना (विक्रम संवत् ८०२ ) से लेकर कुमारपाल राजा (सं० १२३० ) पर्यन्त की गुर्जराराज्यप्रवृत्ति वगेरे इसमें संक्षिप्त से वर्णन की गई है | सिद्धराज जयसिंह का, बंगाल के महोबकपुर ( महोत्सवपुर) के राजा मदनवर्मा के साथ, समागम होने का उल्लेख इसी ग्रन्थ में मिलता है, जो बात, जनरल कनिंगहाम ( General
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org