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________________ स्वर्गवासी मुनिवरश्री ललितविजयसूरिसङ्कलित हिन्दी ‘कुमारपालचरित' के प्रारम्भ में लिखित प्रस्तावना राजर्षि कुमारपाल और महर्षि हेमचन्द्राचार्य सन्त्यन्ये कवितावितानरसिकास्ते भूरयः सूरयः, क्ष्मापस्तु प्रतिबोध्यते यदि परं श्रीहेमसूरेगिरा । उन्मीलन्ति महामहांस्यपि परे लक्षाणि ऋक्षाणि खे, नो राकाशशिनं विना बत भवत्युज्जागरः सागरः || स्वर्गे न क्षितिमण्डले न वडवावक्रे न लेभे स्थितिं, त्रैलोक्यैकहितप्रदाऽपि विधुरा दीना दया या चिरम् । चौलुक्येन कुमारपालविभुना प्रत्यक्षमावासिता, निर्भीका निजमानसौकसि वरे केनोपमीयते सः ॥ अखिलविद्यापारंगत, सकलशास्त्रनिष्णात, सर्वतन्त्रस्वतन्त्र, कलिकालसर्वज्ञ भगवान् श्री हेमचन्द्रसूरीश्वर, तथा उनके परमभक्त, परमार्हत, धर्मात्मा, अतिदयालु, चौलुक्यचूडामणि, गुर्जरधराधिपति, राजर्षि श्रीकुमारपालदेव के भव्यजनमनोरंजक, लोकोत्तर, पवित्र जीवनचरित्र के विषय में, पूर्व काल के अनेक जैन विद्वानों ने विविध ग्रन्थ लिखे हैं और इन महापुरुषों के अगणित गुणगण का मुक्त कण्ठ से भक्तिभरित गान कर स्वनाम को कृतार्थ किया है । भावी प्रजाजनों को, भक्ति का मार्ग दिखलाकर, आत्मिक शक्ति के अभ्युदय करने में अत्यंत अवलंबन दिया है । हमारे सुनने और देखने में आज तक जितने ग्रन्थ आये हैं, उनके नामादि पाठकों के जानने के लिए यहाँ लिखे जाते हैं I १. कुमारपालप्रतिबोध, सोमप्रभाचार्यकृत । इसका दूसरा नाम जिनधर्मप्रतिबोधहेमकुमारचरित्र भी है । इसके कर्ता श्रीसोमप्रभाचार्य बड़े भारी विद्वान् थे । इन्होंने एक काव्य I १. विद्वानों के अवलोकनार्थ वह काव्य हम यहाँ उद्धृत करते हैंकल्याणसार सवितान हरेक्षमोह कांतारवारणसमान जयाद्यदेव । धर्मार्थकामद महोदय वीर धीर सोमप्रभाव परमागम सिद्धसूरे ॥ इस काव्य के ऊपर स्वोपज्ञ व्याख्या है जिसमें पृथक् पृथक् १०० रीति से व्याख्यान लिखे हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002501
Book TitleKumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year2008
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size21 MB
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