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________________ ३१ सबसे पहला निरूपण, इसी ग्रन्थ में मिलता है । इस ग्रन्थ के प्रास्ताविक रूप में हमने ग्रन्थकार के परिचय को लक्ष्य कर एक संस्कृत वक्तव्य लिखा है तथा साथ में ग्रन्थ के परिचय को लक्ष्य कर इंग्रेजी वक्तव्य भी दिया । जिज्ञासुओं के अध्ययन और अवलोकन के निमित्त ये दोनों वक्तव्य भी इस प्रास्ताविक के साथ प्रकट कर दिये जाते हैं । समाला नामक गुजरात के इतिहास का प्रधान और पहला ग्रन्थ अंग्रेज विद्वान् किन्लॉक फार्बस ने अंग्रेजी में लिखा जिसका गुजराती भाषान्तर पढ़कर मेरे मनमें कुमारपाल के इतिहास के मौलिक साधनों का अध्वय, अवलोकन, अन्वेषण आदि करने की विशेष रुचि उत्पन्न हुई । सौभाग्य से मुझे इस परमार्हत् नृपति की राजधानी अणहिलपुर पाटण में ही कुछ वर्षों तक रहने का सुयोग मिला और मेरी अल्प- स्वल्प ज्ञानपिपासा की परितृप्ति में परमोपकारक का स्थान पाने वाले स्वर्गवासी परमुनिपुङ्गव प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयजी महाराज तथा उनके ज्ञानरसिक, ग्रन्थोद्धार, सुशिष्य मुनिवर श्रीचतुरविजयजी महाराज के सात्त्विक सान्निध्य में, वहाँ के बहुमूल्य एवं विशिष्ट समृद्धिपरिपूर्ण भिन्न भिन्न ज्ञानभण्डारों के निरीक्षण का यथेष्ट अवसर मिला । इसी समय से मैंने, अन्यान्य साहित्यिक सामग्री के साथ कुमारपालविषयक साहित्य का भी संग्रह आदि करना प्रारम्भ किया । प्रायः ४५ वर्ष जितने जीवन के विशेष काल में, जो कुछ इस विषय की सामग्री मैं प्राप्त कर सका उसे यथासाधन प्रकाश में रखने का प्रयत्न करता रहा । इस प्रयत्न के फलस्वरूप, जितने प्रबन्ध, चरित आदि प्रकाशित हुए हैं इनक कुछ निर्देश, इस प्रास्ताविक के प्रारम्भ में ही किया जा चुका है I प्रस्तुत संग्रह भी उसी लक्ष्यका एक और विशिष्ट फल है । अभी एक और भी ऐसा संग्रह अवशिष्ट है- पर शायद अब उसे में प्रकाश में (रखने का अवसर न पा सकूँगा । इस अवशिष्ट संग्रह में, मेरा लक्ष्य प्राचीन गुजराती-राजस्थानी भाषा में कुमारपाल विषयक जितना साहित्य उपलब्ध है उसे एकत्र कर एक सुसंपादन के रूप में प्रकाशित करना है | बहुत सामग्री तो संकलित रूप में तैयार की हुई पड़ी है - परन्तु अब मन और शारीर दोनों इसके लिये उतना उत्साहित नहीं दिखाई पड़ते । इस संग्रह का मुद्रणकार्य प्रारम्भ करते समय मेरे मनमें, इसके साथ कुमारपाल का एक संपूर्ण एवं प्रमाणभूत विस्तृत इतिहास लिखने का संकल्प था, क्योंकि इस विषयकी सबसे अधिक सामग्री आज तक मेरे ही द्वारा सम्पादित हो कर प्रकाश में आई है और जो कुछ अविशिष्ट सामग्री है उसका भी प्राय: सर्वाधिक संकलन एवं संचय मेरे समीप है । महान् गुजरात और विशाल राजस्थान के इतिहास में कुमारपाल का राज्यशासनसमय सर्वोत्तम युग जैसा रहा है । सारे पश्चिम भारत का वह सुवर्णयुग था । समृद्धि, संस्कृति, स्वप्रभुत्व और सौराज्य की दृष्टि से वह गुण अपनी चरम सीमापर पहुँचा हुआ थे । कुमारपाल एक अत्युच्च आदर्शजीवी राजा था । उसने अपने राज्य को - राष्ट्र को सुसंस्कारसम्पन्न, समृद्धिपरिपूर्ण एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002501
Book TitleKumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year2008
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size21 MB
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