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________________ ३० खण्डित है । इसमें बहुत से ऐसे ऐतिहासिक प्रबन्ध हैं जो प्रबन्धचिन्तामणि में प्राप्त होते हैं। पुरातन प्रबन्धसंग्रह नामक ग्रन्थ के सम्पादन में, हमने जिस प्रकार के ३-४ प्रबन्धात्मक प्रकीर्ण संग्रहों पर से, ऐतिहासिक प्रबन्धों का संकलन किया है उसी प्रकार के और प्रायः वैसे ही विषयों के फुटकल प्रबन्ध, इस संग्रह में मिलते हैं । इनमें से कुमारपाल राजा के जीवन के साथ सम्बन्ध रखनेवाले प्रबन्धों को एकत्र रूप में यहाँ पर संकलित किये हैं । जिस प्रति पर से यह संकलन किया गया है, वह है तो अच्छी पुरानी हमारे अनुमान से वि० सं० १५०० के पूर्व की लिखी हुई होनी चाहिये-पर अशुद्ध बहुत है । इसकी भाषा भी बहुत सादी, कुछ अपभ्रष्ट और एक प्रकार से बोलचाल की संस्कृत है जो लोकगम्य देश्य भाषा का अनुकरण सूचित करती है । मालूम देता है कि संस्कृत भाषा के प्रारम्भिक शिक्षार्थियों के पठन निमित्त, इसका संकलन किया गया है । इस संकलन में, कुमारपाल के जीवन के विषय की कुछ ऐसी छोटी छोटी घटनाएँ भी संगृहीत हैं जो अन्य प्रबन्धों में दृष्टिगोचर नहीं होती । आचार्य हेमचन्द्रसूरि के प्रबन्ध की भी कुछ ऐसी बातें इस प्रबन्ध में लिखी हुई मिलती हैं जो अन्यत्र अप्राप्य हैं । यद्यपि ये बातें गौण स्वरूप की हैं परन्तु कुछ विशिष्ट ऐतिहासिक तथ्यों को भी प्रदर्शित करती हैं। (५) सोमप्रभाचार्यकृत कुमारपालप्रतिबोध संग्रहगत ५वीं रचना में, सोमप्रभाचार्यकृत प्राकृत बृहत्काय ग्रन्थ कुमारपालप्रतिबोध का ऐतिहासिक सारभाग संकलित है। इस ग्रन्थ की एकमात्र प्राप्त पूर्ण प्रति पाटण के भण्डार में सुरक्षित है जो ताडपत्रों पर वि० सं० १४५८ में गुजरात के प्रसिद्ध पुरातन नगर खंभायत में लिखी गई है । मुख्य करके प्राकृत भाषा में इसकी रचना की गई है और ग्रन्थ का विस्तार प्रायः ८८०० श्लोकपरिमाण जितना विशाल है । इसके कर्ता सोमप्रभाचार्य हैं जिनने वि० सं० १२४१ में इसकी रचना पूर्ण की । ये आचार्य स्वयं राजा कुमारपाल और आचार्य हेमचन्द्र के केवल सम-समयवर्ती ही नहीं थे अपितु उनके साथियों में से थे, अत: इनकी इस रचना का ऐतिहासिक महत्त्व बहुत अधिक है । इस ग्रन्थ का सर्वप्रथम सम्पादन मेरे द्वारा होकर, बडौदा के [भूतपूर्व] गायकवाड राज्य की सुप्रसिद्ध प्राच्यग्रन्थमाला-गायकवाडस् ओरिएन्टल सिरीझमें, ई० स० १९२० में प्रकाशन हुआ। उस सम्पादन में, मैंने ग्रन्थगत जितना ऐतिहासिक भाग था उसका पृथक् तारण कर, परिशिष्ट के रूप में संकलित कर दिया था, जिससे इस ग्रन्थ का, जो जिज्ञासु विद्वान् केवल ऐतिहासिक वस्तु जानने को दृष्टि से ही उपयोग करना चाहे, उनके सरलता से वह प्राप्त हो सके । वह ग्रन्थ अब प्राय अप्राप्य सा है । अत: उसका वह ऐतिहासिक सारभागरूप संकलन हमने यहाँ पर पुनर्मुदित कर दिया है। कुमारपाल के इतिहास के विषय में अन्वेषण और अनुसन्धान करनेवाले विद्वानों-लेखकों को इसका अवलोकन अत्यावश्यक है । कुमारपाल के जीवन चरित का, सूत्र रूप में परन्तु सर्वथा प्रामाणिक ऐसा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002501
Book TitleKumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year2008
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size21 MB
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