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________________ अभी तक और कोई पुष्ट प्रमाण हमें उपलब्ध नहीं हुआ । परन्तु इसमें जो संक्षिप्त चरितवर्णन है वह वहुत ही व्यवस्थित, संबद्ध और किसी प्रकार की अतिशयोक्ति से अस्पृष्ट है । अतः इसकी रचना कुमारपाल की मृत्यु के बाद बहुत थोडे ही समय में हुई हो, ऐसा अनुमान किया जाय, तो उसमें हमें कोई बाधक प्रमाण नहीं दिखाई देता । इस चरित में कुमारपाल का, राज्यप्राप्ति के पूर्व तक का ही, चरित्र दिया गया है। राज्यप्राप्ति के बाद का कोई वर्णन इसमें नहीं है । अन्त के ५ श्लोको में सिर्फ इतना ही सूत्ररूप से सूचित किया गया है कि"राज्यगादी पर बैठने बाद कुमारपाल ने पहले उन सब अपने उपकारी जनों को बुलाया और उनका यथोचित आदर-सन्मान किया । फिर बाद में यथासमय, आम के वृक्षों परका कर लेना माफ किया. निःसन्तान मरनेवाले के कटम्बों की सम्पत्ति का जप्त करना बन्ध किया. सातों देशों में, सातों व्यसनों का सेवन निषिद्ध किया, और १२ वर्ष पर्यन्त सब प्राणियों की हिंसा का परिहार कराया । उत्तर में तुरुष्क देश पर्यन्त, पूर्व में गंगा के तीर पर्यन्त, दक्षिण में विन्ध्याचल और पश्चिम में समुद्र पर्यन्त की पृथ्वी अपने शासन में अधिकृत कर, और उसे जैन मन्दिरों से अलंकृत करके जैनधर्म का आराधन करता हुआ वह स्वर्ग में गया ।" कुमारपाल के पूर्व जीवन के विषय में जितना भी वर्णन अन्यान्य चारित्रों-प्रबन्धों आदि में मिलता है उन सबमें हमें प्रस्तुत चरितगत वर्णन अधिक प्रमाणभूत और तथ्यरूप मालूम देता है । अन्यान्य चरित्र और प्रबन्ध लेखकों ने इसी के आधार पर से बहुत कुछ अपना वर्णन पल्लवित करके लिखा है । उदाहरण के तोर पर, प्रस्तुत संग्रह में ही जो २ रा चरित सोमतिलक सूरिकृत दिया गया है उसके प्रारम्भ का जो १९५ श्लोक जितना भाग है वह इसी चरित का सम्पूर्ण शब्दशः अवतरण रूप है । इसी तरह उसके बाद, जो बड़ा चरित्रात्मक ३ रा कुमारपालप्रबोध प्रबन्ध है उसमें भी, कुमारपाल के पूर्व जीवन का वर्णनात्मक भाग बहुत कुछ इसी के आधार पर से लिखा गया है और इसके बहुत सारे श्लोक भी उसमें यथावत् उद्धृत किये गये हैं । जिनमण्डन गणिकृत कुमारपालप्रबन्ध में भी इसके बहुत से श्लोक उद्धृत हैं । इससे ज्ञात होता है कि उन अन्यान्य चरित्र-प्रबन्ध लेखकों ने इस संक्षिप्त चरित को, कुमारपाल के पूर्व जीवन के वर्णन के लिये विशेष आधारभूत और मौलिक मान कर, इसका पूरा उपयोग किया है । अत एव कुमारपाल के चरित्रात्मक साधनों में यह एक बहुत प्रमाणभूत प्रबन्ध सा है इसमें कोई सन्देह नहीं । (२) सोमतिलकसूरिकृत कुमारपालचरित संग्रह का २ रा चरित है वह सोमतिलकसूरिरचित है । ये आचार्य रुद्रपल्लीय गच्छ के संघतिलकसूरि के शिष्य थे। यद्यपि इसमें इसकी रचना के समय का ज्ञापक कोई निर्देश नहीं किया गया है तथापि सोमतिलकसूरि की अन्य ग्रन्थरचना पर से इनका निश्चित समय ज्ञात है, अतः इस चरित का रचनासमय अनुमान से इस समय के आसपास सहज ही में समझा जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002501
Book TitleKumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year2008
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size21 MB
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