________________
( १७ )
मुनि के यह वचन सुन कर माता, पिता तथा पुत्र तीनों व्यक्तियों को वैराग्य उत्पन्न हुआ, और श्री ऋषभदेव के चरण कमल को नमस्कार कर आये और धर्म में उद्यमवंत हुए ।
वह कुमार सोलह हजार वर्ष पर्यन्त कुछ, व्रणादिक रोगों की वेदना भोग कर अंतसमय में कर्म का आलोचन कर शुभ परिणाम से मृत्यु पाकर प्रथम देवलोक में देवता भव में उत्पन्न हुआ वहां से निकल कर हे राजन् ! यह तेरा पुत्र पेंगलकुमार हुआ है । इस भांति कुमार का पूर्व व वर्णन करके गांगिल मुनि फिर कहने लगे
श्लोक
मद्यपानाद्यथा जीवो, न जानाति हिताहितम् । धर्माधर्मो न जानाति, तथा मिथ्यात्वमोहितः ॥ १ ॥
अर्थ - जिस भांति जीव मद्यपान करने से हिताहित को नहीं जानता है, उसी भांति मिथ्यात्व के उदय से मिथ्यात्वी जीव धर्म अधर्म को नहीं जानता ॥ १ ॥