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श्लोकमिथ्यात्वेनालीढचित्ता नितातं, तत्वातत्वे जानते नैव जीवाः किं जात्यंधाः कुत्रचिद्वस्तुजाते, रम्यारम्यव्याक्तिमासादयेयुः ____ अर्थ-जिस प्राणिका जीव मिथ्यात्वसे बहुतही मोहित होगया है. वे प्राणी तत्वातत्व को नहीं जानते हैं जैसे कोई जन्मान्ध पुरुष किसी भी वस्तु को पाकर भली बुरी नहीं समझता वैसाही जानो
श्लोकअभव्याश्रयिमिथ्यात्वेऽनाद्यनंता स्थितिर्भवेत् ॥ सा भव्याश्रयिमिथ्यात्वे-ऽनादिसांता पुनर्मता ॥ ३ ॥
अर्थ-जो अभब्य आश्रयी मिथ्यात्वकी स्थिती है वो अनादि अनन्त समझना और भव्यजीव आश्रयी मिथ्यात्व की स्थिती अनादि, सान्त होती है. ॥३॥
इस भांति के मिथ्यात्व के उदय से जीव अनन्त कर्म बांधते हैं. वैसे ही तेरे पुत्र ने भी ऐसे अनुचित कर्म उपार्जन किये हैं कि जिनसे पंगु हुआ है __ ये वचन सुन राजा ने पूछा कि हे स्वामिन् ! अब कोई ऐसा उपाय बताइए कि जिससे इस कुमार