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किया. दासी पुत्र होने से राजा महाराजाओं की सेवा चाकरी कररहा है. पूर्वकर्म के उदय से वहां भी गलितकुष्ठ रोग हुआ, जिससे हाथ पांव खिर गये और वह पंगु होगया। अंत समय में शिवादेवी दासी ने नवकार मंत्र सुनाया उससे समाधि मरण पा व्यंतरिक देवता हुआ ।
फिर वहां से आकर इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में सौहार्दपुर नामक नगर में सूरदास सेठ के घर में वसंततिलका नामक भार्या के गर्भ से पुत्र होकर जन्मा। और उसका स्वयंप्रभ नाम हुआ। वह बडा गुणी व विवेकी हुआ, परन्तु उसके पांव में अत्यन्त फोडा फुसी हुआ करते थे जिस से वह चल नहीं सकता था, और बडा दुखी रहता था. जब वह आठ वर्ष का हुआ तब उसके माता पिता बडे चिन्तामग्न रहने लगे कि अपने एक मात्र पुत्र है वह भी पांवों से रोगी है. __इसी अवसर में श्री शत्रंजय तीर्थ की यात्रा करने के लिये एक बड़ा संघ उद्यत हुआ. यह सुन सेठ भी अपने पुत्र को साथ ले संघ के साथ यात्रा करने चले । चलते २ सर्व श्री संघने सिद्धक्षेत्र में