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________________ ( १४ ) उसे एक तपस्वी ने देखकर धर्म श्रवण कराया उससे मृगी मृत्यु पाकर शुभ गति को गई और उनका गर्भ भी दुःख के मारे गिर पडा.. उनको देख एक तपस्वीको बहुत गुस्सा आया, और उस तपस्वी ने सामन्त सिंह कुमार से कहा, कि हे दुष्ट ! जैसे तैंने इस मृगी के पांव छेद दिये हैं वैसे ही तू भी पर भवमें पंगु होयगा । यह श्राप देकर तपस्वी तो अपने आश्रम को चला गया और सामन्तसिंह कुमार तपस्वी को क्रोधातुर देख डरता हुआ बन में भाग गया । परन्तु अशुभ कर्म के उदय से उसे बनमें एक सिंह मिला उसने तत्काल कुमार को मारडाला। वहां से अशुभ ध्यान में मृत्यु पाकर कुमार नरक में गया । वहां आयु पूर्ण करके तिर्यंच तथा नारकी भवों में असंख्याता वर्षोंतक रहा, और उनमें अकाम निर्जरा से बहुत से कर्मों का क्षय करता हुआ, एक बार महाविदेह क्षेत्र में कुसुमपुर नगर के राजा विशालकीर्ति की दासी शिवा के गर्भ से पुत्र होकर उत्पन्न हुआ. माता पिताने 'वज्र सेन' नाम रखा. क्रमसे बडा होते युवानी में पदार्पण
SR No.002498
Book TitleMeru Trayodashi Mahatmya Ane Devdravya Bhakshan Ka Natija
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansagar
PublisherHindi Jainbandhu Granthmala
Publication Year1926
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size2 MB
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