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भोले ! जो प्राणी देव द्रव्यादि खाता है वह बहुत कालतक संसार का परिभ्रमण करता है, इसलिये अब तू कभी ऐसा काम मत करना. ऐ उपदेश दिया परन्तु तो भी उस दुष्ट मिथ्या दृष्टि कुमार ने तीव्र अज्ञान के उदय से कुकर्म नहीं छोडे । ____एक दिन भगवान के छत्र आदि आभरणों को चुराकर बेच दिया, और उपार्जित द्रव्य से अनाचार सेवन किया । जब यह बात सेठ को मालूम हुई तो उसे दुष्टाचारी समझ वहां से निकाल दिया।
वहां से निकल बन में भ्रमण करता हुआ आखेट (शिकार ) कर ने लगा और मृगादिक अनेक जीवों का विनाश कर उदर पोषण करने लगा। उस बन में तपस्वियों का आश्रम था, वहां बहुत तपस्वी पडे रहते थे, तथा वन में से बहुत से मृग, पशु भी विश्राम लेने के लिये वहां आबैठते थे। एक दिन एक सगर्भ मृगी वहां आई. सामन्तसिंह कुमार ने उसे देखकर बाण द्वारा उसके चारों पैर छेद दिये. इससे मृगी (हिरनी) भूमि पर गिरपडी.