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भावार्थ:- उत्तम प्राणी सदैव जीवदया में रमता है, पंचेन्द्रिय समूह को वश करता है, सत्य वचन बोलता है, यही जैन धर्म का रहस्य है ॥ १ ॥
जयणा धम्मस्स जणणी, जयणा धम्मस्स पालणी चेव । तह बुढिकरी जयणा, एगंत सुहावणा जयणा ॥ २ ॥
भावार्थ:- जयणा धर्मकी माता है, जयणा [ उपयोग] धर्म की पालक है, तथा जयणा धर्म की अत्यन्त वृद्धि करने वाली है, और वह जयणा ही एकांत मोक्ष सुख की दाता है ॥ २ ॥
आरंभे नत्थि दया, महिलासंगेण नासए बंभं । संका सम्मतं पव्वज्जा अत्थगहणेणं ॥ ३ ॥
भावार्थ : - आरंभ में दया नहीं होती, स्त्री की संगति करने से ब्रह्मचर्य का नाश होता है, जिन बच्चन में शंका रहे उसे समकित नहीं होता, और द्रव्य परिग्रह का संग्रह करे उसे चारित्र नहीं होता ॥ ३ ॥
जे वंभरभट्ठा, पाए पाडंति बंभयारिणं । ते हुंति टुंट युंगा, बोही पुण दुल्लहा तेसिं ॥ ४ ॥