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.. इधर सेवकों को विदा करके राजा अनंतवीर्य चिन्तातुर हो प्रधान से कहने लगा कि, अब कुमार का क्या उपाय करना चाहिये । सोलह मास तो कल व्यतीत हो जावेंगे; इस प्रकार कह कर राजा. रानी तथा प्रधान बडे चिन्ता मग्न होकर उपाय ढूंढने लगे । परन्तु कुछ भी सूझ नहीं पडा। . . इसी समयमें पांच सौ साधुओं सहित चतुआनी गांगिल नामी आचार्य नगर के उद्यान में आकर समोसरे । बनपाल ने उनकी बहुत सेवा भक्ति करके नगर में जाकर राजा अनन्तवीर्य को आचार्य महाराज के आगमन की बधाई दी। राजा ने हर्षित हो बनपालक को बहुत सा द्रव्य दिया. और हाथी, घोडे आदि बड़ी ऋद्धि के साथ उद्यानमें जाकर आचार्यादि सर्व साधुओं को वन्दन कर हाथ जोड़ कर सन्मुख बैठगया. मुनिराज ने शान्ति हो जाने पर उपदेश देना प्रारंभ किया.
धर्मोपदेश. . जीवदयाई रमिज्जई, इन्दियवगो दमिज्जइ सयावि । सचं चव वदिज्जई, धम्मस्स रहस्समिणं चेव ॥ १ ॥