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________________ 编编编编编编编编编编编编编编编编编编编编编编编编 सैंतालीसवां समवाय 176 सूर्य का दृष्टिगोचर होना, अग्निभूति का गृहवास । अड़तालीसवां समवाय चक्रवर्ती के पट्टन, धर्म जिन के गण और गणधर, सूर्यमंडल का विस्तार । उनचासवां समवाय भिक्षुप्रतिमा, देवकुरु - उत्तरकुरु के मनुष्य, त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति । पचासवां समवाय मुनिसुव्रत जिन की आर्याएँ, दीर्घवैताढ्यों का विष्कंभ, लान्तककल्प के विमानावास, * तिमिस्रखण्डप्रपात गुफाओं की लम्बाई, कांचनक पर्वतों का विस्तार । इक्यावनवां समवाय आचारांग-प्रथम श्रुतस्कन्ध के उद्देशनकाल, चमरेन्द्र की सुधर्मा सभा, सुप्रभ बलदेव का आयुष्य, उत्तर कर्म-प्रकृतियाँ | बावनवां समवाय मोहनीय कर्म के नाम, गोस्तूभ आदि पर्वतों का अन्तर कर्मप्रकृतियाँ, सौधर्म - सनत्कुमार माहेन्द्र के विमानावास । तिरेपनवां समवाय देवकुरु आदि की जीवाएँ, भ. महावीर के श्रमणों का अनुत्तरविमानों में जन्म, संमूर्च्छिम उरपरिसर्पों की उत्कृष्ट स्थिति । चौपनवां समवाय • महापुरुषों का जन्म, अरिष्टनेमि की छद्मस्थपर्याय, भ. महावीर द्वारा एक दिन में 54 व्याख्यान, अनन्त जिन के गण, गणधर । पचमनवां समवाय मल्ल अर्हत् का आयुष्य, मन्दर और विजयादि द्वारों का अन्तर, भ. महावीर द्वारा पुण्यपापविपाकदर्शक अध्ययनों का प्रतिपादन, नारकावास, कर्मप्रकृतियाँ । छप्पनवां समवाय' नक्षत्रयोग, विमल जिन के गण और गणधर // xxi // 编编编编编编写 177 177 178 179 180 182 183 184 186
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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