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तिरेसठवां समवाय
The Sixty Third Samvaya ३२१-उसभे णं अरहा कोसलिए तेसटुिं पुव्वसयसहस्साइं महारायमाझे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ उणगारियं पव्वइए।
कौशलिक ऋषभ अर्हन् तिरेसठ लाख पूर्व वर्ष तक महाराज्य के मध्य में रहे अर्थात् राजा के पद पर आसीन रहे। तदुपरान्त वे मुंडित हुए और अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए।
The king of Ayodhya Arihant Rishabh remained as asking for a period of sixty three poorva years. After that, he got his head tonsured, consecrated as an ascetic from the life of householder.
३२२-हरिवास-रम्पयवासेसु मणुस्सा तेवट्ठिए राइदिएहिं संपत्तजोव्वणा भवंति।
हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष में मनुष्य तिरेसठ रात-दिनों में पूर्ण यौवन को प्राप्त हो जाते हैं अर्थात् | उन्हें माता-पिता द्वारा पालन की अपेक्षा नहीं रहती।
In the region of Harivarsh and Ramyakvarsh the human being gets his full youth within a period of sixty three days. So, he does not expect to be brought up by his parents.
३२३-निसढे णं पव्वए तेवढेि सूरोदया पण्णत्ता। एवं नीलवंते वि। ___निषध पर्वत और नीलवन्त पर्वत पर तिरेसठ-तिरेसठ सूर्योदय कहे गए हैं।
Sixty three sun-rise on Nishadh Mountain and sixty three on Neelvant Mountain sun have been said.
॥ तिरेसठवां समवाय समाप्त ।। (The End of Sixty Third Samvaya)
चौसठवां समवाय
The Sixty Fourth Samvaya ३२४-अट्ठट्ठमिया णं भिक्खुपडिमा चउसट्ठीए राइंदिएहिं दोहि य अट्ठासीएहिं | भिक्खासएहि-अहासुत्तं जाव [ अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएण फासित्ता पालित्ता सोहित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आराहइत्ता आणाए अणुपालित्ता] भवइ।
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समवायांग सूत्र
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63th Samvaya %% % %% % %%
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