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अर्धमागधी देववाणी है, यह इसकी दूसरी विशेषता है । आगम में एक स्थल पर भगवान् महावीर से गणधर गौतम पूछते हैं-भगवन् ! देव किस भाषा में बोलते हैं ? कौन-सी भाषा उन्हें अभीष्ट है ? उत्तर में सर्वज्ञ महावीर बोले-गौतम ! देव अर्धमागधी में बोलते हैं और वही भाषा उन्हें अभीष्ट एवं रुचिकर है ।' उपर्युक्त प्रमाणों से निसन्देह सिद्ध हो जाता है कि अर्धमागधी स्वतन्त्र एवं तीर्थंकर और देवों से बोली जाने के कारण सर्वश्रेष्ठ है । देव तो स्वर्ग में रहने वाले हैं, उन्हें मगध के आधे भाग में बोली जानेवाली भाषा में बोलना क्योंकर अभीष्ट हो सकता है ? वह उन्हें क्यों प्रिय हो सकती है ? इसका उत्तर यही है कि अर्धमागधी स्वतन्त्र, सर्वप्रिय एवं श्रुतिसुखदा भाषा है। प्राकृत और 'संस्कृत ये दोनों अर्धमागधी की सहोदराएं हैं, इन दोनों का अर्धमागधी भाषा को पूर्ण सहयोग मिला हुआ है। यदि अर्धमागधी को लोकोत्तरिक भाषा कहा जाए, तो इसमें कोई अत्यक्ति नहीं होगी ।नन्दीसत्र की भाषा भी अन्य आगमों की भान्ति सुगम और सारगर्भित अर्धमागधी भाषा ही है।
प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाण
युक्ति-सिद्धज्ञान को प्रमाण कहते हैं, जो ज्ञान पदार्थ को अनेक दृतिकोणों से जानने वाला हो वह प्रमाण है, यह प्रमाण का सामान्य लक्षण है ? किन्तु उसके निःशेष लक्षण निम्न प्रकार से हैं जो ज्ञान केवल बिना इन्द्रिय और बिना कीसी सहायता के सीधा आत्मा की योग्यता के बल से उत्पन्न होता है, वह प्रत्यक्ष प्रमाण कहलाता है । इसके विपरीत जो ज्ञान, इंद्रिय और मन की सहायता की अपेक्षा रखता है वह परोक्ष प्रमाण है।
२. सांख्य दर्शन इन्द्रिय प्रवृत्ति को प्रमाण मानता है । ३. प्रभाकर मीमांसक लोग, प्रमाता के व्यापार को प्रमाण मानते हैं। ४. जिस वस्तुतत्त्व का ज्ञान पहले नहीं प्राप्त किया, भाट्ट लोग उसे प्रमाण मानते हैं ।
५. जो विज्ञान अपने विषय को यथार्थरूप से ग्रहण करता है,उसे प्रमाण कहते है, यह मान्यता बौद्धों की है।
६. स्व-पर का निश्चय कराने वाले ज्ञान को प्रमाण मानने वाले जैन हैं। चार्वाक-केवल प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानते हैं। बौद्ध-प्रत्यक्ष और अनुमान ये दो प्रमाण मानते हैं । सांख्य प्रत्यक्ष-अनुमान और शब्द ये तीन प्रमाण मानते हैं । न्यायदर्शन-प्रत्यक्ष-अनुमान-शब्द और उपमान ये चार प्रमाण मानता है। प्राभाकर-अर्थापत्ति सहित पांच प्रमाण मानते हैं । वेदान्त दर्शन और भाट्ट ये अभाव सहित ६ प्रमाण मानते हैं। जैन दार्शनिक, प्रत्यक्ष और परोक्ष ये दो प्रमाण मानते हैं।
१. देवा णं भन्ते ! कयराए भासाए भासन्ति ? कयराए वा भासा भासिज्जमा यो विसिस्सइ ? गोयमा ! देवाणं अद्धमाग___ हीए भामाए भासन्ति, सावि य णं अद्धमागही भासा भासिज्जमाणी विसिस्सइ। भगवती सूत्र, श०५, उ०४. २. इन्द्रिय प्रवृत्तिः प्रमाणमिति कापिलाः । ३. प्रमातृव्यापारः प्रमाणमिति प्रभाकराः । ४. अनधिगातार्थ प्रमाणमिति भाट्टाः। ५. अविसंवादि प्रमाणमिति सौगतः । ६. प्रमाणनयतत्त्वालोकवादिदेवसूरि कृत जैनाः ।