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परिशिष्ट २
आचार्य मलयगिरि ने नन्दीसूत्र की वृत्ति में चित्रान्तर गण्डिका का परिचय अपनी मति-कल्पना से नहीं, अपितु पूर्वाचार्यों के द्वारा जो उन्हें सामग्री उपलब्ध हुई, उसके आधार पर निम्न लिखित रूप से दिया है जो कि विशेष माननीय है
ऋषभदेव और अजित तीर्थंकर के अन्तराल में ऋषभवंशज जो भी राजा हुए हैं, उनकी अन्यगतियों को छोड़कर केवल विगति और अनुसरोपपातिक इन दो गतियों की प्राप्ति का प्रतिपादन करने वाली गण्डका चित्रान्तर गण्डिका- कहलाती है । इसका पूर्वाचार्यों ने ऐसा प्ररूपण किया है कि सगर चक्रवर्ती के सुबुद्धि नामक महामात्य ने अष्टापद पर्वत पर सगर चक्रवर्ती के पुत्र के समक्ष भगवान ऋषभदेव के वंशज आदित्यय आदि राजाओं की सुगति का इस प्रकार वर्णन किया है—उक्त नाभेय वंश के राजा राज्य का पालन करके अन्त समय में दीक्षा धारण कर संसम और तप की आराधना कर सब कर्मों का क्षय करके चौदह लाख निरन्तर क्रमश: सिद्धिगति को प्राप्त हुए। तदनंतर एक सर्वार्थसिद्धमहाविमान में। फिर चौदह लाख निरन्तर मोक्ष को प्राप्त हुए तत्पश्चात् एक सर्वार्थसिद्ध महाविमान में इसी क्रम से वे राजा मुनीश्वर होकर मोक्ष और सर्वार्थसिद्ध तबतक प्राप्त करते रहे जबतक कि सर्वार्थसिद्ध में एक-एक करके ' असंख्य न हो गए । इसके अनन्तर पुनः निरन्तर चौदह चौदह लाख मोक्ष को और दो-दो सर्वार्थसिद्ध को तबतक गए बब तक कि ये दो-दो भी सर्वार्थसिद्धि में असंस्य न हो गए। इसी प्रकार क्रम से पुनः चौदह लाख मोक्ष होने के बाद तीन-तीन, फिर चार-चार करके पचास-पचास तक सर्वार्थसिद्ध महाविमान में गए और वे भी असंख्य होते गए ।
इसके पश्चात् क्रम बदल गया, १४ लाख सर्वार्थ सिद्ध महाविमान में गए, तत्पश्चात् एक-एक मोक्ष को जाने लगे, पूर्वोक्त प्रकार से दो दो फिर तीन-तीन करके पचास तक गए और सब असंख्य होते गए। इनकी तालिका निम्नलिखित है।
१४ १४ १४ १४ १४ १४ २ ३ ४ ५ ६
७
१४ १४ १४ १४ १४ सिद्ध गति में ८ ε १० ५० सर्वार्थसिद्ध में ८ १० ५० सिद्धि गति में
४ *
७ १४
१४ १४ १४ १४ सर्वार्थसिद्ध विमान में इसके बाद फिर क्रम बदला- दो लाख निर्वाण को और दो लाख सर्वार्थसिद्धि को फिर तीन तीन लाख फिर चार-चार लाख इस प्रकार से दोनों ओर यह संख्या भी असंख्यात तक पहुंच गई। इसकी तालिका उदाहरण के रूप में निम्नलिखित है
१ २ ३ १४ १४ १४
५.
१४
६
१४
२ ३ ४ ५ ६ २३ ४ ५ ६
३७३
७ ८ ६ १० मोक्षे गता: ७ ८ १० सर्वार्थसिद्धि गताः
(१)
इसके बाद काल के प्रभाव से फिर क्रम बदला, वह इस प्रकार है ।
१ । ३ । ५ । ७ । ६ । ११ । १३ । १५ । १७ । १६ । मोक्षे गताः
२ । ४ । ६ । ८ । १० । १२ । १४ । १६ । १८ | २० | सर्वार्थसिद्धिं गताः
१. ३३ सागरोपम आयुवाले सर्वार्थसिद्धविमान में संख्यात देवता रह सकते हैं, असंख्यात नहीं, च्यवन भी साथ २ होता रहता है ।