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________________ नन्दीसूत्रम् उत्कृष्ट कितना है, इस का उल्लेख सूत्रकार ने स्वयं किया है, जैसे कि द्रव्यत:-द्रव्य से श्रुतज्ञानी सर्व द्रव्यों को उपयोग पूर्वक जानता और देखता है। इस स्थान पर यह शंका उत्पन्न हो सकती है कि श्रुतज्ञानी सर्व द्रव्यों को कैसे देखता है ? इस के समाधान में कहा जाता है कि यह उपमावाची शब्द है जैसे कि अमुक ज्ञानी ने मेरु आदि पदार्थों का ऐसा अच्छा निरूपण किया मानों उन्होंने प्रत्यक्ष करके दिखा दिया, इसी प्रकार वृत्ति कार भी लिखते हैं "ननु पश्यतीति कथं ? नहि श्रुतज्ञानी श्रुतज्ञानज्ञेयानि सकलानि, वस्तुनि पश्यति. नैषः दोषः, उपमाया अत्र विवक्षितत्वात्, पश्यतीव पश्यति, तथाहि मेर्वादीन् पदार्थानदृष्टानप्याचार्यः शिष्येभ्य प्रालिख्य दर्शयति ततस्तेषां श्रोतृणामेवं बुद्धिरुपजायते-भगवानेष गणी साक्षात्पश्यन्निव व्याचष्टे इति, एवं क्षेत्रादिष्वपि भावनीयं, ततो न कश्चिद् दोषः, अन्ये तु न पश्यति इति पठन्ति, तत्र चोद्यस्यानवकाश एव, श्रुतज्ञानी चेहाभिन्नदशपूर्वधरादि श्रुतकेवली परिगृह्यते, तस्यैव नियमतः श्रुतज्ञानबलेन सर्वव्यादि परिज्ञानसंभवात्, तदारतस्तु ये श्रु निनस्ते सर्व द्रव्यादि परिज्ञाने भजनीयाः, केचित् सर्व द्रव्यादि जानन्ति केचिन्नेति भावः, इथम्भूता च भजना मतिवैचित्र्याद्वेदितव्या।" ____ इसी प्रकार विशिष्ट श्रुतज्ञानी उपयोगपूर्वक सर्व द्रव्यों को सर्व क्षेत्र को सर्व काल को, और सर्व भावों को जानता व देखता है। देशतः और सर्वतः की कल्पना स्वयं करनी चाहिए, क्योंकि जैसे श्रतज्ञानावरणीय का क्षयोपशमभाव होता है, वैसे ही जीव में जानने और देखने की शक्ति प्रकाशित होती है। श्रुतज्ञान और नन्दीसूत्र का उपसंहार मूलम्-१. अक्खर सन्नी सम्म, साइअं खलु सपज्जवसिग्रं च । गमिअं अंगपविट्ठ, सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥१३॥ २. आगमसत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिट्ठ।। बिति सुअनाणलंभं, तं पुव्वविसारया धीरा ॥१४॥ ३. सुस्सूसइ पडिपुच्छइ, सुणेइ गिण्हइ अईहए याऽवि। ____ तत्तो अपोहए वा, धारेइ करेइ वा सम्मं ॥६५॥ ४. मूग्रं हुंकार वा, बाढंक्कार पडिपुच्छइ वीमंसा । तत्तो पसंगपारायणं च परिणिट्ठा सत्तमए ॥६६॥ ५. सुत्तत्थो खलु पढमो, बीयो निज्जुत्तिमीसियो भणियो। - तइयो य निरवसेसो, एस विही होइ अणुप्रोगे ॥६॥ से तं अंगपविट्ठ, से तं सुअनाणं, से तं परोक्खनाणं, से तं नन्दी। ॥ नन्दी समत्ता ॥
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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