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________________ द्वादशाङ्ग-परिचय - . टीका-इस सूत्र में गण्डिकानुयोग का वर्णन किया गया है गण्डिका शब्द प्रबन्ध वा अधिकार के अर्थ में रूढ है। इस में कुलकरों की जीवनचर्या, एक तीर्थंकर का दूसरे तीर्थंकर के मध्यकालीन में होने वाली सिद्ध परम्परा का वर्णन है । चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, गणधर, हरिवंश, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, चित्रान्तर गण्डिका अर्थात् पहले व दूसरे तीर्थंकर के अन्तराल में होने वाले गद्दीधर राजाओं का इतिहास । उपर्युक्त उत्तम पुरुषों का पूर्व भवों में मनुष्य, तिर्यंच, निरयगति, देव भव, इन सब का जीवन चरित्र, अनेक पूर्वभवों का तथा वर्तमान एवं अनागत भवों का इतिहास है । जब तक उन का निर्वाण नहीं हो जाता तब तक का सम्पूर्ण जीवन वृत्तान्त गण्डिका अनुयोग में वर्णित है। उक्त दोनों अनुयोग इतिहास से सम्बन्धित हैं। चित्रान्तर गण्डिका के विषय में वृत्तिकार लिखते हैं - . "चित्तन्तरगण्डिअाउ त्ति, चित्रा-अनेकार्था अन्तरे-ऋषभाजिततीर्थकरापान्तराले गण्डिकाः चित्रान्तरगण्डिकाः, एतदुक्तं, भवति-ऋषभाजिततीर्थकरान्तरे ऋषभवंशसमुद्भुतभुपतीनां, शेषगतिगमनव्युदासेन शिवगतिगमनानुत्तरोपपातप्राप्ति प्रतिपादिका गण्डिका चित्रान्तरगण्डिका ।" . जैसे गन्ने आदि की गंडेरी आस-पास की गांठों से सीमित रहती है, ऐसे ही जिस में प्रत्येक अधिकार भिन्न-भिन्न इतिहास को लिए हुए हों, उसे गण्डिकानुयोग कहते हैं। ५. चूलिका . मूलम्—से कि तं चूलिपायो ? चूलियानो–आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलिया, सेसाइं पुव्वाइं अचूलिपाइं । से तं चूलिपायो । . छाया-अथ कास्ताश्चूलिकाः ? चूलिका आदिमानां चतुर्णा पूर्वाणां चूलिकाः, शेषाणि पूर्वाण्यचूलिकानि, ता एताश्चूलिकाः । भावार्थ-देव ! वह चलि का किस प्रकार है ? आचार्य बोले-भद्र ! आदि के के चार पूर्वो की चूलिकाएं हैं, शेष पूर्वो की चूलिका नहीं है । यह चूलिकारूप दृष्टिवाद का वर्णन है। टीका-इस सूत्र में चूलिका-चूला का वर्णन किया गया है। जैसे मेरु पर्वत की चूला ४० योजन की है । मेरु पर्वत की जो ऊचाई बतलाई है, उस में चूलिका नहीं है। चूलिका की ऊंचाई उस से भिन्न है । वैसे ही यह भी दृष्टिवाद की चूला है। चूला शिखर को कहते हैं, जो विषय परिकर्म, सूत्र, पूर्व और अनुयोग में वर्णन नहीं किया, उस अनुक्त विषय का संग्रह चूला में किया गया है । यही चूणिकार का अभिमत है, जैसे कि--- __"दिट्टिवाय जं परिकम्म सुत्त पुज्व–अणुओगे न भणियं तं चूलासु भणियं ति ।" इस प्रकार श्रुतरूपी मेरु चूलिका से सुशोभित है। इस का वर्णन सब के अन्त में किया है। दृष्टिवाद के पहले चार भेद अध्ययन करने के बाद ही इसे पढ़ना चाहिए । इन में प्राय: उक्त-अनुक्त विषयों का संग्रह है। आदि के चार पूर्वो में चूलिकाओं का उल्लेख किया हुआ है, शेष में नहीं। इस पंचम अध्ययन में उन्हीं का वर्णन है। ये चूलिकाएं १४ पूर्वो से कथंचित् भिन्नाभिन्न हैं। यदि सर्वथा अभिन्न ही होती
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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