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नन्दी सूत्रम्
तो उसे अलग पांचवां अध्ययन नहीं कहा जा सकता । यदि भिन्न मानें तो पूर्वी में उस की गणना नहीं हो सकती । जैसे दशवैकालिकसूत्र की दो चूलिकाएं हैं, वे दोनों न दशवेकालिक से सर्वथा भिन्न हैं और न अभिन्न हो, वैसे ही यहां भी समझना चाहिए, चूलिका में क्रमश: ४, १२, ८, १०, इस प्रकार ३४ वस्तुएं हैं । चूलिका को यदि दृष्टिवाद का परिशिष्ट मान लिया जाए तो अधिक उचित प्रतीत होता है ।
वादाङ्गका उपसंहार
मूलम् - दिट्टिवायरस णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जानो पडिवत्तीम्रो, संखिज्जाम्रो निज्जुत्तीश्रो, संखेज्जाओ संगहणीश्रो ।
से णं अंगट्टयाए बारसमे अंगे, एगे सुप्रक्खंवे, चोहसपुव्वाई, संखेज्जा वत्थू, संखेज्जा चूलवत्थू, संखेज्जा पाहुडा, संखेज्जा पाहुड - पाहुडा, संखेज्जाश्रो पाहुडा, संखेज्जा पाहुड - पाहुडिग्राप्रो, संखेज्जाई पयसहरसाई पयग्गेणं,
संखेज्जा अक्खरा, प्रणता गमा, प्रणता पज्जवा, परिता तसाता थावरा,
सासय- कड- निबद्ध-निकाइमा जिण पन्नत्ता भावा प्राघविज्जंति, पण्णविज्जति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति ।
से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरण-करण परूवणा विज्जति से त्तं दिट्टिवाए | सूत्र ५६।।
छाया - दृष्टिवाद (पात) स्य परीता वाचनाः, संख्येयान्यनुयोगद्वाराणि संख्येया वेढाः, संख्येयाः श्लोकाः, संख्येयाः प्रतिपत्तयः, संख्येया नियुक्तयः, संख्येयाः संग्रहण्यः ।
सोऽङ्गार्थतया द्वादशममङ्गम्, एकः श्रुतस्कन्धः, चतुर्दश पूर्वाणि संख्येयानि वस्तूनि, संख्येयानि चूलावस्तूनि संख्येयानि प्राभृतानि संख्येयानि प्राभृतप्राभृतानि संख्येयाः प्राभृतिकाः, संख्येयाः प्राभृतप्राभृतिकाः, संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रेण संख्येयान्यक्षराणि, अनन्ता गमाः, अनन्ताः पर्यवाः, परीतास्त्रसाः, अनन्ताः स्थावराः, शाश्वत - कृत निबद्ध निकाचिता जिनप्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते, प्रज्ञाप्यन्ते, प्ररूप्यन्ते, दर्श्यन्ते, निदर्श्यन्ते, उपदर्श्यन्ते ।
स एवमात्मा एवं ज्ञाता, एवं विज्ञाता, एवं चरण-करणप्ररूपणाऽऽख्यायते स एष दृष्टिवादः || सूत्र ५६ ||
भावार्थ - दृष्टिवाद की संख्यात वाचनाएं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ – छन्द संख्यात श्लोक, संख्यात प्रतिपत्तिएं, संख्यात निर्यु क्तिएं, और संख्यात संग्रहणिएं, हैं ।