________________
नन्दीसूत्रम्
राज्यश्री, प्रव्रज्या ग्रहण, उग्रतप, केवलज्ञान उत्पन्न होना, तीर्थप्रवर्तन, शिष्य, गणधर, गण, आर्याएं, प्रवर्तनी, चतुर्विध संघ का परिमाण, जिन, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, पूर्वधर, वादी, अनुत्तरविमानगति, उत्तरदैक्रिय, कितनों ने सिद्धगति प्राप्त की, इत्यादि विषय वर्णन किए गए हैं, इतना ही नहीं.-.-मोक्ष सुख की प्राप्ति और उनके साधन इस प्रकार के विषय वणित हैं । इस अनुयोग में प्रथमबार सम्यक्त्व लाभ से लेकर यावन्मात्र उन जीवों ने भव ग्रहण किये, उन भवों में जो-जो आत्मकल्याण के लिए व प्राणिमात्र के हित को लक्ष्य में रखकर जो २ शुभ क्रियायें कीं, उन सबका विस्तृत वर्णन किया है । शेष वर्णन सूत्रकर्ता ने मूलपाठ में स्वयं कर दिया है। इससे यह भली-भांति सिद्ध होता है कि जो तीर्थंकरों के जीवनचरित होते हैं, वे सर्व मूल प्रथमानुयोग में अन्तर्भूत हो जाते हैं। ..
वास्तव में जो सूत्रकर्ता ने 'मूलपढमाणुअोगे' पद दिया है, इसका यही भाव है कि इस अनुयोग में सम्यक्त्व प्राप्ति से लेकर निर्वाण पद पर्यन्त पूर्णतया जीवनवृत्त कथन किया गया है । जैसे कि कहा है"मूलं धर्मप्रणयनतीर्थकरास्तेषां प्रथमसम्यक्त्वावाप्तिलक्षणपूर्व-वादिगोचरोऽनुयोगो मूलप्रथमानुयोगः । इस का भावार्थ पहले लिखा जा चुका है।
मूलम्-२. से किं तं गंडिपाणुप्रोगे ? गंडिग्राणुयोगे-कुलगरगंडियानो तित्थयरगंडियानो, चक्कवट्टिगंडियानो, दसारगंडिप्रायो, बलदेवगंडिअायो, वासुदेवगंडियागो, गणधरगंडियागो, भद्दबाहुगंडिअायो, तवोकम्मगंडियानो, हरिवंसगंडिप्रायो, उस्सप्पिणीगंडियानो, प्रोसप्पिणीगंडियायो, चित्तंतरगंडियानो, अमर-नर-तिरिअ-निरय-गइ-गमण-वि विह-परियट्टणाणुअोगेसु, एवमाइग्रामो गंडियायो आधविज्जति, पण्णविज्जति, से तं गंडिग्राणुनोगे, से तं अणुनोगे।
छाया-२. अथ कः स गण्डिकानुयोगः? गण्डिकानुयोगे कुलकरगण्डिकाः, तीर्थकरगण्डिकाः, चक्रवत्तिगण्डिकाः, दशारगण्डिकाः, बलदेवगण्डिकाः, वासुदेवगण्डिकाः, गणधरगण्डिकाः, भद्रबाहुगण्डिकाः, तप.कर्मगण्डिकाः, हरिवंशगग्डिकाः, उत्सर्पिणीगण्डिकाः, अवसर्पिणीगण्डिकाः, चित्रान्त रग ण्डिकाः, अमर-गर-तिर्यङ्-निरयगति-गमन-विविधपरिवर्तनानुयोगेषु, एवमादिका भावा गण्डिका आख्यायन्ते, प्रज्ञाप्यन्ते, स एव गण्डिकानुयोगः, स एषोऽनुयोगः ।
भावार्थ-शिष्य ने पूछा-~वह गण्डिकानुयोग किस प्रकार है ? आचार्य उत्तर देते हैं-गण्डिकानुयोगमें कुल करगण्डिका, तीर्थंकरगण्डिका, बलदेवगंडिका, वासुदेव गण्डिका, गणधरगण्डिका, भद्रबाहुगण्डि का, तपः कर्मगण्डिका, हरिवंशगण्डिका, उत्सर्पिणी गण्डिका, अवसर्पिणीगंडिका, चित्रान्तरगण्डिका, देव, मनुष्य, तिर्यञ्च, नरकगति, इनमें गमन और विविध प्रकार से संसार में पर्यटन इत्यादि गण्डिकाएँ कही गयी हैं । इस प्रकार प्रज्ञापन की गयी है । यह वह गण्डिका अनुयोग है ।
MARS