________________
द्वादशा-परिचय
३४५
कर रूप में जन्म अभिपेया--अभिषेक तथा रायवरसिरीयो-राज्याभिषेक प्रधान राज्यलक्ष्मी पन्चज्जाश्रो-प्रव्रज्या य-और तवा-तप उग्गा-उग्र-घोर तप केवलनाणुप्पयाअो- केवलज्ञान की उत्पत्ति तित्थपवत्तणाणि अ-और तीर्थ की प्रवृत्ति करना सीसा-उन के शिष्य गणा-गच्छ, गणहरा--गणधर अज्जपवत्तिणीनो अ-आर्यिकाएं और प्रवत्तिनियें संघस्स चउविहस्स-चार प्रकार के. संघ का जंच-जो परिमाणं—परिमाण है, जिण-मणपज्जव-श्रोहिनाणि -जिन, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी अ—और सम्मत्त सुअन्नाणिणो– सम्यक् समस्त श्रुतज्ञानी, वाई-वादी, अणुत्तर गई-अनुत्तर गति, अ--पुनः उत्तरवेउब्विणो–उत्तरवैत्रिय श्र-पुनः मुणिणो– मुनि जत्तिया- जितने सिद्धा-सिद्ध हुए, जह-जैसे सिद्धिपहो-सिद्धि पथ का देसिनो-उपदेश दिया, च- और जच्चिरं कालं-जितनी देर पाअोवगयापादपोपगमन किया, जहिं-जिस स्थान पर जत्तियाई भत्ताई—जितने भक्त छेइत्ता-छेदन कर जे-जो तिमिरओघविप्पमुक्के-अज्ञान अन्धकार के प्रवाह से मुक्त मुणिवरुत्तमे-मुनियों में उत्तम अंतगड़ेअन्तकृत हुए च-और मुक्खसुहमणुत्तर—मोक्ष के अनुत्तर सुख को पत्ते-प्राप्त हुए एकमाइ–इत्यादि एवमन्ने, अ-अन्य भावा-भाव मूलपढमाणुप्रोगेमूलप्रथमानुयोग में कहिश्रा- कहे गये हैं । से जं . मूलपढमाणुप्रोगे-यह मूलप्रथमानुयोग का वर्णन है।
भावार्थ-शिष्य ने पूछा-भगवन् ! वह अनुयोग कितने प्रकार का है ?
आचार्य उत्तर में बोले-वह दो प्रकार का है, जैसे-१. मूलप्रथमानुयोग और २. गण्डिकानुयोग। ___मूलप्रथमानुयोग में क्या वर्णन है ? मूलप्रथमानुयोग में अर्हन्त भगवन्तों के पूर्व भवों का वर्णन, देवलोक में जाना, देवलोक का आयुष्य, देवलोक से च्यवन कर तीर्थकर रूप में जन्म, देवादिकृत्य जन्माभिषेक तथा राज्याभिषेक प्रधान राज्यलक्ष्मी, प्रव्रज्या- साधु-. दीक्षा तत्पश्चात् उग्र-घोर तपश्चर्या, केवलज्ञानकी उत्पत्ति ,तीर्थ की प्रवृत्ति करना, उनके शिष्य, गण, गणधर, आर्यिकायें और प्रतिनियें, चतुर्विध संघ का जो परिमाण है, जिन--सामान्यकेवली, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी और सम्यक् (समस्त) श्रुतज्ञानी, वादी, अनुत्तरगति और उत्तरवैक्रिय, यावन्मात्र मुनि सिद्ध हुए, मोक्ष का पथ जैसे दिखाया, जितने समय तक पादपोपगमन संथारा-अनशन किया, जिस स्थान पर जितने भक्तों का छेदन किया, और अज्ञान अन्धकार के प्रवाह से मुक्त होकर जो महामुनि मोक्ष के प्रधान सुख को प्राप्त हुए इत्यादि । इसके अतिरिक्त अन्य भाव भी मूलप्रथमानुयोग में प्रतिपादन किये गये हैं । यह मूल प्रथमानुयोग का विषय संपूर्ण हुआ।
___टीका-इस सूत्र में अनुयोग का वर्णन किया गया है । जो योग अनुरूप या अनुकूल है, उसको अनुयोग कहते हैं अर्थात् जो सूत्र के अनुरूप सम्बन्ध रखता है, वह अनुयोग है। यहाँ अनुयोग के दो भेद किए गए हैं, जैसे कि मूलप्रथमानुपोग और गण्डिकानुयोग । मूल प्रथमानुयोग में तीर्थंकर के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है, जिस भव में उन्हें सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई, उस भव से लेकर तीथंकर पद पर्यन्त उनकी जीवन चर्या का वर्णन किया है। पूर्व भव, देवलोकगमन, आयु, च्यवन, जन्माभिषेक,