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नन्दीसूत्रम्
है कि "अहिंसा संजमो तवो' इस प्रकार कथन करने से दोनों पद सापेक्षिक सिद्ध हो जाते हैं। यद्यपि ये २२ सूत्र, सूत्र और अर्थ दोनों प्रकार से व्यवच्छिन्न हो चुके हैं, तदपि पूर्व परंपरागत इनका अर्थ उक्त प्रकार से किया गया है । तात्पर्य यह है कि जो पद स्वतन्त्र हो और जो पद दूसरे पद की अपेक्षा रखता हो, इस प्रकार के पदों व अर्थों से युक्त उपर्युक्त ८८ सूत्र वर्णन किए गए हैं। वृतिकार ने राशिक मत आजीविक संप्रदाय को बताया है, न कि रोहगुप्त से प्रचलित संप्रदाय ।
३. पूर्व मूलम्-से किं त पुव्वगए ? पुन्वगए चउद्दसविहे पण्णत्ते, तंजह-१. उप्पायपुव्वं, २. अग्गाणीयं, ३. वीरिअं, ४. अत्थिनत्थिप्पवायं, ५. नाणप्पवायं ६. सच्चप्पवायं, ७. पायप्पवायं, ८. कम्मप्पवायं, ६. पच्चक्खाणप्पवायं ३०. विज्जाण प्पवायं, ११. अवंझ, १२ पाणाऊ, १३ किरिआविसालं, १४. लोकबिंदुसारं ।
१. उप्पाय-पुव्वस्स णं दस वत्थू, चत्तारि चूलियावत्थू पन्नत्ता, २- अग्गेणीय-पुव्वस्स णं चोद्दसवत्थू, दुवालस चूलिपावत्थू पण्णत्ता, .. ३. वीरिय-पुव्वस्स णं अट्ठ वत्थू, अट्ठचूलियावत्थू पण्णत्ता, ४. अत्थिनत्थिप्पवाय-पुवस्स णं अट्ठारस, वत्थू, दस चूलियावत्थू पण्णत्ता, ५. नाणप्पवाय-पुव्वस्स णं बारस वत्थू, पण्णत्ता, ६. सच्चप्पवाय-पुवस्स णं दोण्णि वत्थू पणत्ता, ७. आयप्पवाय-पुव्वस्स णं सोलस वत्थू पणता, ८. कम्मप्पवाय-पुव्वस्स णं तीसं वत्थू पणत्ता, ६. पच्चक्खाण-पुव्वस्स णं वीसं वन्यू पण्णत्ता, १०. विज्जाणुप्पवाय-पुव्वस्स णं पन्नरस वत्थू पण्णत्ता, ११. अवंज्झ-पुव्वस्स णं बारस वत्थू पन्नत्ता, १२. पाणाउ-पुव्वस्स णं तेरस वत्थू पण्णत्ता, १३. किरिबाविसाल-पुव्वस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता, १४. लोकबिंदुसार-पुन्वस्स णं पणवीसं वत्थू पण्णत्ता। १. दस १. चोदस २. अट्ठ ३. (अ)ट्ठारसेव ४. बारस ५. दुवे ६. अवत्थूणि।
सोलस ७ तीसा ८. वीसा ६ पन्नरस १० अणुप्पवायम्मि ॥६६॥