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द्वादशाश-परिचय
स्वसूत्रपरिपाठया । एवमेव सपूर्वापरेणाऽष्टाशीतिः सूत्राणि भवन्तीत्याख्यातम्, तान्येतानि सूत्राणि ।
भावार्थ-शिष्यने पूछा-भगवन् ! वह सूत्ररूप दृष्टिवाद कितने प्रकार का है ? आचार्य ने उत्तर दिया-सूत्ररूप दृष्टिवाद २२ प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जैसे--
१. ऋजुसूत्र, २. परिणतापरिणत, ३. बहुभंगिक, ४. विजयचरित, ५. अनन्तर, ६. परम्पर, ७. आसान, ८. संयूथ, ६. सम्भिन्न, १०. यथावाद, ११. स्वस्तिकवत, १२. नन्दावर्त, १३. बहुल, १४. पृष्टापृष्ट, १५, व्यावर्त्त, १६. एवंभूत, १७. द्विकावत, १८. वर्तमानपद, १६. समभिरूढ, २०. सर्वतोभद्र, २१. प्रशिष्य, २२. दुष्प्रतिग्रह ।
ये २२ सूत्र छिन्नच्छेदन-नय वाले, स्वसमय सूत्र परिपाटी अर्थात् स्वदर्शन की वक्तव्यता के आश्रित हैं । ये ही २२ सूत्र आजीवक गोशालक के दर्शन की दृष्टि से अच्छिन्नच्छेद-नय वाले हैं । इसी प्रकार ये ही सूत्र त्रैराशिक सूत्र परिपाटी से तीननय वाले है
और ये ही २२ सूत्र स्वसमय-सिद्धान्त की दृष्टि से चतुष्कनय वाले हैं । इस प्रकार पूर्वापर सर्व मिलाकर अट्ठासी सूत्र होते हैं । इस प्रकार यह कथन तीर्थंकर व गणधरों ने किया है। यह सूत्ररूप दृष्टिवाद का वर्णन हुआ।
टीका-इस सूत्र में अठासी प्रकार के सूत्रों का वर्णन किया है और साथ ही इन में सर्व द्रव्य सर्वपर्याय, सर्वनय और सर्व भङ्ग विकल्प नियम आदि दिखलाए गए हैं। जो अर्थों की सूचना करे वे सूत्र कहलाते हैं । इस विषय में वृत्तिकार भी लिखते हैं-"मय कानि सूत्राणि पूर्वस्य पूर्वगत सूत्रार्थस्य सूचनात् सूत्राणि सर्वव्याणां सर्वपर्यायानां सर्वभाविकल्पानां प्रदर्शकानि, तथा चोक्तं चूर्णिकृता
ताणि य सुत्ताइं सब दवाण, सज्वपज्जवाण, सम्वनयाण सम्वमा विकप्पाण य पदसणाणि, सम्बस्स पुष्वगयस्स सुयस्स अस्थस्स य सुयग त्ति सुयणासाउ (वा) सुया भणिया जहामिहायस्था
वृतिकार और चूर्णिकार के विचार इस विषय में एक ही हैं। उक्त सूत्र में २२ सूत्र, छिन्नच्छेद नय के मत से स्वसिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले हैं और ये ही २२ सूत्र अछिन्नच्छेद नय की दृष्टि से अबन्धक, त्रैराशिक, और नियतिवाद का वर्णन करने वाले हैं। अथवा संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्दनय ये चार नय हैं, यहां इन से अभिप्राय नहीं। छिन्नच्छेद नय उसे कहते हैं जैसे कि जो पद व श्लोक दूसरे पद की अपेक्षा नहीं करता और न दूसरा पद उस की अपेक्षा रखता है। इस प्रकार से जिस पद की व्याख्या की जाए, उसे छिन्नच्छेद नय कहते हैं । उदाहरण के लिए, जैसे
____धम्मो मंगलमुक्किटु तथा छिन्नो-द्विधाकृतः-पृथक्कृतः, छेदः-पर्यन्तो येन स चिन्नच्छेदः, प्रत्येकं विकल्पितपर्यन्त इत्यर्थः, स चासौ नयश्च छिन्नच्छेदनयः ।
अब इन्हीं सूत्रों को अच्छिन्नच्छेद नय के मत से वर्णन करते हैं, जैसे धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है । तब प्रश्न होता है कि वह कौन सा ऐसा धर्म है जो सर्वोत्कृष्ट मंगल है ? इस के उतर में कहा जाता