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________________ २१२ नन्दीसूत्रम् छाया-५. अथ किं तत् सम्यक्-श्रुतम् ? सम्यक्-श्रुनं-यदिदम् अर्हद्भिर्भगवद्भिरुत्पन्नज्ञान-दर्शनधरैस्त्रैलोक्य-निरीक्षित-महित-पूजितः, अतीत-प्रत्युत्पन्नानागतज्ञायकैः, सर्वज्ञैः, सर्वदर्शिभिः, प्रणीतं द्वादशाङ्ग-गणि-पिटकं, तद्यथा-- १. आचारः, २. सूत्रकृतम्, ३. स्थानम्, ४. समवायः, ५. व्याख्याप्रज्ञप्तिः , ६. ज्ञाताधर्मकथाः, ७. उपासकदशाः, ८. अन्तकृद्दशाः, ६. अनुत्तरौपपातिकदशाः, १०. प्रश्नव्याकरणानि, ११ विपाक्-श्रुतम्, १२ दृष्टिवादः, इत्येतद् द्वादशाङ्गं गणिपिटक-चतुर्दशपूर्विणः सम्यक्श्रुतम्, अभिन्न-दशपूर्विणः सम्यक्-श्रुतं, ततः, परं भिन्नेषु भजना, तदेतत् सम्यक्-श्रुतम् ॥सूत्र ४१॥ पदार्थ-से किं तं सम्ममुग्रं-अथ वह सम्यक्श्रुत क्या है ? सम्मसुधे-सम्यक्-श्रुत उप्पण्णनाणदसणधरेहिं-उत्पन्न ज्ञान-दर्शन को धरने वाले तिलुक्क-त्रिलोक द्वारा निरिक्खिा आदरपूर्वक देखे हुए महिन-भावयुक्त नमस्कृत्य तीय-पडुप्पण्ण-मणागय-अतीत, वर्तमान और अनागत के जाणएहिं-जानने वाले सबएणूहि-सर्वज्ञ और सबदरिसीहिं-सर्वदर्शी अरहंतेहिं-अहंत भगवंतेहिं-भगवन्तों द्वारा पणीनं-प्रणीत-अर्थ से कथन किया हुआ जं-जो इमं यह दुवालसंग-द्वादशाङ्गरूप गणिपिडगंगणिपिटक है, जैसे-अायारो-आचाराङ्ग सूयगडो-सूत्रकृताङ्ग, ठाणं-स्थानाङ्ग, समवाओसमवायाङ्ग, विवाहपण्णत्ती--व्याख्याप्रज्ञप्ति, नायाधम्मकहानो--ज्ञाताधर्मकथाङ्ग उबासगदसामओ-उपासकदशाङ्ग अंतगडदसानो-अन्तकृद्दशाङ्ग अणुत्तरोववाइयदसामो-अनुत्तरोपपातिकशाङ्ग पण्हावागरणाई-प्रश्नव्याकरण विवागसुग्रं-विपाकश्रुत दिठिवाओ-दृष्टिवाद इच्चेअं-इस प्रकार यह दुवालसंगंद्वादशाङ्ग गणिपिडगं-गणिपिटक चोहम्सपुब्बिस्स-चतुर्दशपूर्वधारी का सम्मसुधे-सम्यक्श्रुत है, अभिण्णदसपुचिस्स-सम्पूर्णदशपूर्वधारी का सम्मसुअं-सम्यक्श्रुत है, तेण परं--उसके उपरान्त भिरणेसु-दशपूर्व से कम धरनेवालों में भयणा-भजना है। से तं सम्मसुत्रं-इस प्रकार यह सम्यक्च त है। भावार्थ-गुरु से प्रश्न किया-देव ! वह सम्यक्-श्रुत क्या है ? .. उत्तर देते हुए गुरुजी बोले- सम्यक्श्रुत उत्पन्नज्ञान और दर्शन को धरनेवाले, त्रिलोक-भवनपति, व्यन्तर, विद्याधर, ज्योतिष्क और वैमानिकों द्वारा आदर-सन्मानपूर्वक देखे गए, तथा यथावस्थित उत्कीर्तित, भावयुक्त नमस्कृत, अतीत, वर्तमान और अनागत के जाननेवाले सर्वज्ञ और सर्वदर्शी अहंत-तीर्थकर भगवन्तों द्वारा प्रणीत-अर्थ से कथन किया हुआ, जो यह द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक है, जैसे १. आचाराङ्ग, २. सूत्रकृताङ्ग, ३. स्थानाङ्ग, ४. समवायाङ्ग, ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति, ६. ज्ञातधर्मकथाङ्ग, ७. उपासकदशाङ्ग, अन्तकृद्दशाङ्ग, २. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्ग, १०. प्रश्नव्याकरण, ११. विपाकश्रुत और, १२. दृष्टिवाद, इस प्रकार यह द्वादशाङ्ग गणिपिटक चौदह पूर्वधारी का सम्यक्श्रुत होता है । सम्पूर्ण दशपूर्वधारी का भी सम्यक्-श्रुत होता है।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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