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नन्दीसूत्रम् सादिकश्रुत, ८: अनादिकश्रुत, ६. सपर्यवसितश्रुत, १०. अपर्यवसित्तश्रुत, ११. गमिकश्रुत, १२. अगमिकश्रुत, १३. अङ्गप्रविष्टश्रुत और १४. अनङ्गप्रविष्टश्रुत ॥सूत्र ३८॥ __टीका-मतिज्ञान की तरह श्रुतज्ञान भी परोक्ष है, श्रुतज्ञान मतिपूर्वक होता है । इसी दृष्टिकोण को लक्ष्य में रखकर सूत्रकार ने मतिज्ञान के पश्चात् श्रुतज्ञान का वर्णन प्रारम्भ किया है । इस सूत्र में श्रुतज्ञान के १४ भेदों का नामोल्लेख किया है-जैसे कि अक्षर, अनक्षर, संज्ञी, असंज्ञी, सम्यक्, मिथ्या, सादि, अनादि, सान्त, अनन्त, गमिक, अगमिक, अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाहिर ये १४ भेद श्रुतज्ञान के कथन किए गए हैं। इनकी व्याख्या क्रमशः सूत्रकर्ता स्वयमेव आगे करेंगे। किन्तु यहां पर शंका उत्पन्न होती है कि जब अक्षरश्रुत और अनक्षरश्रुत दोनों में शेष भेदों का अन्तर्भाव हो जाता है, तब शेष १२ भेदों का नामोल्लेख क्यों किया है ?
इसका उत्तर यह है कि जिज्ञासु मनुष्य दो प्रकार के होते हैं, व्युत्पन्नमति वाले और अव्युत्पन्नमति वाले । इनमें जो अव्युत्पन्नमति वाले व्यक्ति हैं, उनके विशिष्ट बोध के लिए सूत्रकार ने उपर्युक्त १२ भेदों का उपन्यास किया है, क्योंकि ये अक्षरश्रुत एवं अनक्षरश्रुत इन दोनों भेदों के द्वारा उपयुक्त शेष भेदों का भान प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं । उन्हें भी इस गहन विषय का ज्ञान हो सके, इस पुनीत लक्ष्य को एन्टिगोचर रखते हुए सूत्रकार ने शेष भेदों का भी उल्लेख किया है। यह श्रतज्ञान का विषय, केवल विद्वज्जन भोग्य ही न बन सके, अपितु सर्वसाधारण जिज्ञासु व्यक्तियों की रुचि भी श्रुतज्ञान की ओर बढ़ सके, इसलिए शेष १२ भेदों का वर्णन करना भी अनिवार्य हो जाता है ।सूत्र ३८॥
१. अक्षरश्रुत मूलम्-से किं तं अक्खर-सुग्रं ? अक्खर-सुग्रं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा१. सन्नक्खरं, २. वंजणक्खरं, ३. लद्धिअक्खरं ।
१. से किं तं सन्नक्खरं ? सन्नक्खरं अक्खरस्स संठाणागिई, से तं सन्नक्खरं।
२. से किं तं वंजणक्खरं ? वंजणक्खरं अक्खरस्स वंजणाभिलावो, से तं वंजणक्खरं।
३. से किं तं लद्धि-अक्खरं ? लद्धि-अक्खरं अक्खरलद्धियस्स लद्धिअक्खरं समुप्पज्जइ, तं जहा-सोइंदिअ-लद्धि-अक्खरं, चक्खिदिय-लद्धि-अक्खरं, घाणिदियलद्धि-अक्खरं, रसणिदिय-लद्धि-अक्खरं, फासिंदिय-लद्धि-अक्खरं, नोइंदिय-लद्धिअक्खरं से, तं लद्धि-अक्खरं, से तं अक्खरसुअं ।
छाया-२. अथ किं तदक्षर-श्रुतम् ? अक्षर-श्रुतं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-१. संज्ञा। क्षरं, २. व्यञ्जनाक्षरं, ३. लब्ध्यक्षरम् ।