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श्रमिनिबधिक ज्ञान का उपसंहार
तम - अर्द्ध मुहूर्त प्रमाण तु — विशेषणार्थं च - और धारणा - धारणा कालमसंखं संखं संख्यात व असंख्यात काल पर्यन्त होती है, नायव्वा - इस प्रकार जानना चाहिए ।
भावार्थ – अवग्रह-नैश्चयिक ज्ञान का काल परिमाण एक समय, ईहा और अपायज्ञान का समय अर्द्धमुहूर्त्त प्रमाण तथा धारणा का काल परिमाण संख्यात व असंख्यात काल पर्यन्त है । इस प्रकार समझना चाहिए ।
मूलम् - ४. पुट्ठ सुणेइ सद्दं, रूवं पुण पासइ अपुट्ठ ं तु । गंधं रसं च फासं च, बद्धट्ठ ं वियागरे ॥ ८५॥
छाया - ४. स्पृष्टं शृणोति शब्द, रूपं पुनः पश्यत्यस्पृष्टन्तु । गन्धं रसं च स्पर्शञ्च, बद्धस्पृष्टञ्च व्यागृणीयात् ॥८५॥
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' पदार्थ - आत्मा स६ - - शब्द को पुट्ठे – श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा स्पृष्ट हुए को सुणेइ – सुनता है, किन्तु रूवं – रूप को पुण - फिर अपुट्ठे-बिना स्पृष्ट हुए ही पासइ – देखता है, 'तु' – शब्द एवकार अर्थ में आया हुआ है, इससे चक्षु इन्द्रिय अप्राप्य कारी सिद्ध किया गया है। गंधं च गन्धरसं च - और रस फासं च - और स्पर्श को बज्रपुट्ठे – बद्धस्पृष्ट को जानता है, वियागरे – ऐसा कहना चाहिए ।
- भावार्थ - श्रोत्र इन्द्रिय के द्वारा स्पृष्ट हुआ शब्द सुना जाता है, किन्तु रूप को बिना स्पृष्ट किए ही देखता है, 'तु' शब्द का प्रयोग 'एवकार' के अर्थ में हैं, इससे चक्षुरिन्द्रिय अप्राप्यकारी सिद्ध किया गया है । गन्ध, रस और स्पर्श को बद्ध-स्पृष्ट अर्थात् घ्राणादि इन्द्रियों से बद्ध और स्पृष्ट हुए को ही कहना चाहिए अर्थात् घ्राण, रसन और स्पर्शन इन्द्रियों से बद्धस्पृष्ट हुआ पुद्गल जाना जाता है ।
मूलम् - ५. भासा - समसेढीओ, सद्दं जं सुणइ मीसियं सुणइ । वीसेढी पुण सद्दं, सुणेइ नियमा पराधाए ॥ ८६ ॥
छाया - ५ भाषा - समश्रेणीतः शब्दं यं शृणोति मिश्रितं शृणोति । विश्रेणि पुनः शब्दं शृणोति नियमात्पराघाते ॥८६॥
पदार्थ- - भासा - वक्ता द्वारा छोड़े जाते हुए पुद्गल समूह को समसेढीओ - समश्रेणियों में स्थित जं– जिस सद्--- शब्द को सुबह - सुनता है उसको मीसियं - मिश्रित को सुबह - सुनता है । पुण - पुनः वीसेढी - विश्रेणि व्यवस्थित सद्द - शब्द को श्रोता नियमा— नियम से पराघाए - पराघात होने पर ही सुनता है ।
भावार्थ - वक्ता द्वारा छोड़े जाते हुए भाषारूप पुद्गल समूह को समश्रेणियों में