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________________ २४६ सूत्रम् आभिनिबोधिक ज्ञान का उपसंहार मूलम् - १. उग्गह ईहावाओ य, धारणा एव हुंति चत्तारि । आभिणिबोहियनाणस्स, भेयवत्थू समासेणं ॥ ८३ ॥ छाया - १. अवग्रह sara धारणा एवं भेदवस्तूनि आभिनिबोधिकज्ञानस्य, पदार्थ - श्राभिणिबोहियनागस्स – आभिनिबोधिक ज्ञान के उग्गह ईहाऽवाय - अवग्रह, ईहा, अवाय य — और धारणा - धारणा चत्तारि - चार एव क्रम प्रदर्शन के लिए, भेयवत्थू - भेद - विकल्प . हुति — होते हैं । छाया - २. अर्थानामवग्रहणे, व्यवसायेऽवायः, चत्वारि । समासेन ॥ ८३ ॥ भावार्थ - आभिनिबोधिकज्ञान - मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा क्रम से ये चार भेद-वस्तु - विकल्प संक्षेप में होते हैं । भवन्ति मूलम् — २. प्रत्थाणं उग्गहणम्मि, उग्गहो तह वियालणे ईहा । ववसायम्मि अवायो, धरणं पुण धारणं बिंति ॥ ८३ ॥ अवग्रहस्तथा धरणं पुनर्धारणां पदार्थ - श्रत्थाणं - अर्थों के उग्गहणम्मि – अवग्रहण को उग्गहो – अवग्रह तह तथा वियालणे अर्थों के पर्यालोचन को ईहा - ईहा, ववसायम्मि — अर्थों के निर्णय को वायो - - अपाय पुण - पुनः धरणं अर्थों की अविच्युति स्मृति और वासना रूप को धारणं - धारणा बिंति - कहते हैं । मूलम् — ३. उग्गह इक्कं समयं, ईहावाया कालमसंखं संखं च, धारणा छाया - ३. अवग्रह एक समयं, विचारणे - ईहा | ब्रुव भावार्थ - अर्थों के अवग्रहण को अवग्रह, तथा अर्थों के पर्यालोचन को ईहा, अर्थों के निणर्यात्मक ज्ञान को अपाय और उपयोग की अविच्युति, स्मृति और वासना रूप को धारणा कहते हैं । ॥८३॥ मुहुत्तमद्धं तु । होइ नायव्वा ॥ ८४ ॥ हावायो मुहुत्तर्मर्द्धन्तु । कालमसंख्येयं संख्येयञ्च धारणा भवति ज्ञातव्या ॥ ८४॥ पदार्थ - उग्गह - अवग्रह इक्कं समयं - एक समय प्रमाण, ईहावाया - ईहा और अवाय मुहु
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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