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सूत्रम्
आभिनिबोधिक ज्ञान का उपसंहार
मूलम् - १. उग्गह ईहावाओ य, धारणा एव हुंति चत्तारि । आभिणिबोहियनाणस्स, भेयवत्थू समासेणं ॥ ८३ ॥
छाया - १. अवग्रह
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धारणा एवं भेदवस्तूनि
आभिनिबोधिकज्ञानस्य,
पदार्थ - श्राभिणिबोहियनागस्स – आभिनिबोधिक ज्ञान के उग्गह ईहाऽवाय - अवग्रह, ईहा, अवाय य — और धारणा - धारणा चत्तारि - चार एव क्रम प्रदर्शन के लिए, भेयवत्थू - भेद - विकल्प . हुति — होते हैं ।
छाया - २. अर्थानामवग्रहणे, व्यवसायेऽवायः,
चत्वारि ।
समासेन ॥ ८३ ॥
भावार्थ - आभिनिबोधिकज्ञान - मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा क्रम से ये चार भेद-वस्तु - विकल्प संक्षेप में होते हैं ।
भवन्ति
मूलम् — २. प्रत्थाणं उग्गहणम्मि, उग्गहो तह वियालणे ईहा । ववसायम्मि अवायो, धरणं पुण धारणं बिंति ॥ ८३ ॥
अवग्रहस्तथा धरणं पुनर्धारणां
पदार्थ - श्रत्थाणं - अर्थों के उग्गहणम्मि – अवग्रहण को उग्गहो – अवग्रह तह तथा वियालणे अर्थों के पर्यालोचन को ईहा - ईहा, ववसायम्मि — अर्थों के निर्णय को वायो - - अपाय पुण - पुनः धरणं अर्थों की अविच्युति स्मृति और वासना रूप को धारणं - धारणा बिंति - कहते हैं ।
मूलम् — ३. उग्गह इक्कं समयं, ईहावाया कालमसंखं संखं च, धारणा
छाया - ३. अवग्रह एक समयं,
विचारणे - ईहा |
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भावार्थ - अर्थों के अवग्रहण को अवग्रह, तथा अर्थों के पर्यालोचन को ईहा, अर्थों के निणर्यात्मक ज्ञान को अपाय और उपयोग की अविच्युति, स्मृति और वासना रूप को धारणा कहते हैं ।
॥८३॥
मुहुत्तमद्धं तु । होइ नायव्वा ॥ ८४ ॥
हावायो मुहुत्तर्मर्द्धन्तु ।
कालमसंख्येयं संख्येयञ्च धारणा भवति ज्ञातव्या ॥ ८४॥
पदार्थ - उग्गह - अवग्रह इक्कं समयं - एक समय प्रमाण, ईहावाया - ईहा और अवाय मुहु