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________________ अवग्रह आदि के छ उदाहरण हुए ही पहचान लेना। यह सोना है, यह पीतल है, यह वैदूर्य मणि है, यह काचमणि है, को दूर से आते इस प्रकार बिना संदेह किए पहचानना । १०. संदिग्ध — कुछ अन्धेरे में बादल ? यह पीतल है या सोना ? से जनना, क्योंकि व्यावर्तक के बिना सन्देह दूर नहीं होता । २४३ यह ठूंठ है या कोई महाकाय वाला व्यक्ति है ? यह धूआं है या यह रजत है, या शुक्ति ? इस प्रकार किसी वस्तु को संदिग्ध रूप ११. ध्रुव-इन्द्रिय और मन, इन का निमित्त सही मिलने पर विषय को नियमेन जानना । कोई मशीन का पुर्जा खराब होने से मशीन अपना काम ठीक नहीं कर रही । यदि तद्विषयक विशेषज्ञ चीफ इंजनियर आकर नुक्स को देखता है, तो यह अवश्यंभावी है, कि वह खराब हुए पुर्जे को पहचान लेता है। इसी प्रकार जो जिस विषय का विशेषज्ञ है, उसे तद्विषयक गुण-दोष का जान लेना अवश्यभावी है। १२. ध्रुव- - निमित्त मिलने पर भी कभी ज्ञान हो जाता है, और कभी नहीं, कभी चिरकाल तक रहने वाला होता है, कभी नहीं । बहु, बहुविध क्षित्र अनिधित, असंदिग्ध और ध्रुव इन में विशिष्ट क्षयोपशम उपयोग की एकाग्रता, अभ्यस्तता, ये असाधारण कारण हैं । तथा अल्प, अल्पविध, अक्षिप्र, निश्रित, संदिग्ध और अध्रुव इन से होने वाले ज्ञान में क्षयोपशम की मन्दता, उपयोग की विक्षिप्तता, अनभ्यस्तता, ये अन्तरङ्ग असाधारण कारण हैं। किसी के चक्षुरिन्द्रिय की प्रबलता होती है, तो अपने अनुकूल प्रतिकूल को तथा शत्रु-मित्र को और किसी अभीष्ट वस्तु को बहुत दूर से ही देख लेता हैं। किसी के धोत्रेन्द्रिय बड़ी प्रबल होती है, वह मन्दतम शब्द को भी बड़ी आसानी से सुन लेता है। जिस से वह साधक और बाधक कारणों को पहले से ही जान लेता है। किसी की घ्राणेन्द्रिय तीव्र होतो है, वह परोक्ष में रही हुई वस्तु भी ढूंढ लेता है। मिट्टी को सूंघ कर ही जान लेता है कि इस भूगर्भ में किस धातु की खान है ? कुत्ते पद चिन्हों को सूंघकर अपने स्वामी को या चोर को ढूंढ लेते हैं। कोड़ी-चींटी सूंघ कर ही परोक्ष में रहे हुए खाद्य पदार्थ को ढूंढ लेती है। विशेषज्ञ भी सूंघ कर ही असली नकली वस्तु की पहचान कर लेते हैं । कोई रसीले पदार्थों को चखकर ही उस का मूल्यांकन कर लेते हैं। उस में रहे हुए गुण दोष को भी जान लेते हैं। प्रज्ञाचक्षु या कोई अन्य व्यक्ति लिखे हुए अक्षरों को स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा पढ़कर सुना देते हैं । यह कौन व्यक्ति है ? वे स्पर्श करते ही पहचान लेते हैं। किसी का नोइन्द्रिय उपयोग तीव्र होता है, ऐसे व्यक्ति की चिन्तन शक्ति बड़ी प्रबल होती है । जो आगे आने वाली घटना है या शुभाशुभ परिणाम है, उसे वह पहले ही जान लेता है । ये ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म के विशिष्ट क्षयोपशम के विचित्र परिणाम हैं। 1 पांच इन्द्रियां और छठा मन, इन के माध्यम से मतिज्ञान उत्पन्न होता है, इन छहों को अर्थावग्रह एवं ईहा, अवाय, धारणा के साथ जोड़ने से २४ भेद बन जाते हैं। चक्षु और मन को छोड़ कर चार इन्द्रियों के साथ व्यंजनावग्रह भी होता है । २४ में चारकी संख्या जोड़ने से २८ हो जाते हैं । २८ को बारह भेदों से गुणा करने पर ३३६ भेद हो जाते हैं। प्रकारान्तर से ३३६ भेद इस तरह हैं— उपर्युक्त छहों का अर्थावग्रह एवं छहों की ईहा, इसी प्रकार अवाय और धारणा के भी ६-६ भेद बनते हैं । कुल मिला कर २४ भेद बनते हैं । २४ को उक्त ब
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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