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________________ नन्दी सूत्रम् जगाए अमुगा! अमुग ! – हे अमुक ! हे अमुक !! तस्थ - तब चोयगे - शिष्य पन्नवर्ग – गुरु को एवं वयासीइस प्रकार से बोला - किं- क्या एग- एक समय - समय के पविट्ठा - प्रविष्ट पुग्गला - पुद्गल गहण - मागच्छति - ग्रहण करने में आते हैं ? दुसमय पविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ? - दो समय के प्रविष्ट हुए पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं ? जाव - यावत् दससमयपविट्ठा - दस समय के प्रविष्ट पुद्गल गहणमागच्छंति ? – ग्रहण करने में आते हैं ? संखिज्जसमय - संख्यात समय में पविट्ठा - प्रविष्ट पुग्गलापुद्गल गहणमागच्छति ? – ग्रहण करने में आते हैं ? असंखिज्जसमय - असंख्यात समय में पविट्ठाप्रविष्ट पुग्गला - पुद्गल गहणमागच्छंति ? ग्रहण करने में आते हैं ? एवं - इस प्रकार वदतं - कहते हुए चोयगं - शिष्य को परणव- गुरुजी एवं - इस प्रकार वयासी - कहने लगे एगसमयपविट्ठाएक समय में प्रविष्ट पुग्गला - पुद्गल गहणं – ग्रहण में नो-नहीं श्रागच्छंति - आते, दुसमयपविट्ठादो समय में प्रविष्ट पुग्गला - पुद्गल गहणं – ग्रहण में नो- नहीं आगच्छंति - आते जाव — यावत् दस समय पविट्ठा - दस समय में प्रविष्ट पुग्गला - पुद्गल गहणं - ग्रहण में नो- नहीं श्रागच्छंति - आते, संखिज्जसमय - संख्यात समय में पविट्ठा - प्रविष्ट पुग्गला- पुद्गल गहणं---ग्रहण में नो-नहीं श्रागच्छति - ते असं खिज्जसमय पचिट्ठा - असंख्यात समय में प्रविष्ट पुग्गला- पुद्गल गहणं - ग्रहण श्रागच्छति आते हैं। से त्तं पडिबोहग—इस प्रकार यह प्रतिबोधक के दिट्ठतेणं-- दृष्टान्त से व्यञ्जन अवग्रह का वर्णन हुआ। २३२ } भावार्थ - चार प्रकार का व्यञ्जन अवग्रह, छ प्रकार का अर्थावग्रह, छ प्रकार की हा छ प्रकार का अवाय और छ प्रकार की धारणा - इस प्रकार अठाईसविध आभिनिबोधिक - मतिज्ञान के व्यञ्जन अवग्रह की प्रतिबोधक और मल्लक के उदाहरण से प्ररूपणा करूंगा । शिष्यने पूछा - गुरुदेव ! प्रतिबोधक के उदाहरण से व्यञ्जन अवग्रह का निरूपण किस प्रकार है ? गुरुजी उत्तर में बोले – प्रतिबोधक के दृष्टान्त से, जैसे – यथानामक कोई व्यक्ति किसी सोये हुये पुरुष को " हे अमुक ! हे अमुक !!" इस प्रकार 'जगाए । शिष्यने से गुरु पूछा - भगवन् ! क्या ऐसा कहने पर, उस पुरुष के कानों में एक समय के प्रवेश किए हुए पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं, दो समय के यावत् दस समय के, या संख्यात समय, व असंख्यात समय के प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं ? ऐसा पूछने पर पन्नवक - गुरु ने शिष्य को उत्तर दिया - वत्स ! एक समय के प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में नहीं आते, न दो समय के यावत् दस समम के और न संख्यात समय के, अपितु असंख्यात समय के प्रविष्ट हुए पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं । इस तरह यह प्रतिबोधक के दृष्टान्त से व्यञ्जन अवग्रह का स्वरूप हुआ । टीका - इस सूत्र में व्यंजनावग्रह को समझाने के लिए सूत्रकार ने प्रतिबोधक का दृष्टान्त देकर विषय को स्पष्ट किया है। जैसे कोई व्यक्ति गाढ़ निद्रा में सो रहा है, तव अन्य कोई आकर बिशेष
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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